गलत स्लीपिंग पैटर्न भी है ब्रेन स्ट्रोक का कारण, गोल्डन पीरियड में पहुंचें न्यूरोलॉजिस्ट के पास
वर्ल्ड स्ट्रोक डे : स्ट्रोक मल्टी फैक्टोरियल बीमारी, अनिद्रा भी इसकी एक वजह
ब्रेन स्ट्रोक बुजुर्गों के अलावा युवाओं को भी आ रहा है जिसका कारण बुजुर्गों से अलग है। इसमें खून की नलियों में धल्ले बनना, खून की नलियों की बनावट में कमी, खून की नली बंद हो जाना या खून की नली फट जाना हार्ट में कोई बीमारी आदि कारण भी है, हालांकि इसका लाइफस्टाइल से संबंध नहीं है लेकिन नया संबंध जो नजर आ रहा है वो नींद की कमी या अनिद्रा होना है। नींद पूरी न होने से भी स्ट्रोक आ रहे हैं, क्योंकि इससे ब्लड प्रेशर बढ़ता है। जब मरीजों से बात करते हैं तो पता चलता है कि नींद पूरी न होना, नींद को लेकर लगातार लापरवाही , मोटापा, बीपी आदि कारण से स्ट्रोक आने की स्थिति बनी। यह मल्टी फैक्टोरियल बीमारी है, क्योंकि इससे आने का कारण तनाव भी होता है। जैसै-जैसे यह सारे रिस्क फैक्टर बढ़ते हैं, स्ट्रोक का खतरा पैदा होने लगता है। 29 अक्टूबर के दिन विश्व स्ट्रोक दिवस पर जानिए इससे बचाव के उपाय।
पोस्ट स्ट्रोक के बाद होने लगता है डिप्रेशन
आप कब सो रहे हैं, कब उठ रहे हैं और कितनी नींद ले रहे हैं इसका सीधा प्रभाव सेहत पर पड़ता है। जरूरी है कि आप समय से जागे और समय से सोएं। नींद की कमी व स्लीप एपिनिया भी इसका कारण बनता है। आजकल जिस तरह से लोग रात को जागकर सुबह सोते रहते हैं, उससे अनिद्रा की समस्या होती है। पोस्ट स्ट्रोक मरीजों को डिप्रेशन भी होने लगता है, इसलिए मनोचिकित्सकीय इलाज भी जरूरी हो जाता है। अब युवाओं के केस भी आ रहे हैं, जिसमें नींद का पैटर्न गड़बड़ होना भी कारण बनकर सामने आ रहा है। इसके अलावा अपना बीपी नियंत्रित रखें व लाइफस्टाइल को दुरूस्त करें तो इससे बचाव किया जा सकता है। डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, मनोचिकित्सक
अधिकतम 4 घंटें में इलाज शुरू होना जरूरी
हमारे शरीर की बायोलॉजिकल क्लॉक के मुताबिक नींद लेना जरूरी है लेकिन हम देख रहे हैं कि लोग पूरी-पूरी रात मोबाइल पर बिता रहे हैं, जिससे बीपी, एंजाइटी और फिर अवसाद होने लगता है। वंशानुगत कारण, बीपी, मोटापा और गलत खानपान भी कारण हैं। अब बचाव यह है कि रात को सही समय पर सोया जाए व सुबह 6 से 7 बजे तक जागकर व्यायाम किया जाए। स्ट्रोक के लक्षण की बात करें तो कोई भी कमी अचानक शरीर में महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं, जैसे बोलना बंद हो जाए, चलने में बैलेंस नहीं बनना, हाथ कमजोर पड़ना, धुंधला नजर आने लगना, हाथ में झुनझुनी आने लगना। किसी बड़े हॉस्टिपल में पहुंचे जहां न्यूरोलॉजिस्ट, सीटी स्कैन व एमआरआई की सुविधा तुरंत मिले। दरअसल, स्ट्रोक में हर मिनट में करोड़ों में नर्व डैमेज होते हैं। ऐसे में जल्दी से जल्दी न्यूरोलॉजिस्ट के पास पहुंचना जरूरी होता है ताकि इलाज शुरू हो सके। गोल्डन पीरियड अधिकतम 4 घंटे होता है, लेकिन कम से कम समय में न्यूरोलॉजिस्ट के पास पहुंचने का प्रयास करें क्योंकि स्ट्रोक की पहचान भी करना होती है, ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रेन स्ट्रोक दो तरह के होते हैं, एक में खून की नली बंद हो जाती है, एक में नली फट जाती है। इन दोनों का इलाज अलग-अलग होता है। युवाओं को अपनी बायोलॉजिकल क्लॉक को मेनटेन रखना चाहिए। -डॉ. नीरेंद्र राय, न्यूरोलॉजिस्ट
स्ट्रोक से बचाव के उपाय
- व्यायाम को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
- अपने स्लीपिंग पैटर्न को सुधारें।
- पैकेज्ड फूड व बाहर के खाने का सेवन कम करें।
- कॉलेस्ट्रोल व बीपी को नियंत्रित रखें।
- फैमिली हिस्ट्री में स्ट्रोक हो तो जागरूक रहें।
- स्ट्रोक के लक्षणों को पहचाने।