ट्राइबल सीटों पर किंग मेकर होंगी महिलाएं
महिला बहुल 29 में से 25 ट्राइबल सीटें, 19 में कांग्रेस काबिज
भोपाल। मध्यप्रदेश की सत्ता पर पांचवीं बार काबिज होने के लिए भाजपा ने अपना सारा फोकस ट्राइबल और महिला वोटर्स पर केंद्रित कर दिया है। वोटर्स की ताजा सूची के बाद सियासी दल अपने चुनावी समीकरण की जमावट में जुट गए हैं। सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि निर्वाचन आयोग ने महिलाओं की अधिकता वाले जिन 7 जिले और 29 विधानसभा क्षेत्रों का ब्यौरा दिया है, वे सभी ट्राइबल बहुल हैं। पिछले चुनाव में इनमें से ज्यादातर क्षेत्रों में कांग्रेस काबिज हुई थी। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं और आदिवासियों को रिझाने एक साथ कई घोषणाएं की हैं। इन दोनों वर्गों के हाथ में सत्ता की चाबी देख भाजपा-कांग्रेस इन्हें अपने पाले में करने के लिए जमीन आसमान एक करने में जुटे हैं। शिवराज सरकार लाड़ली बहना योजना को गेमचेंजर मानकर महिला वोटर्स को साधने में लगी है। उन्हें हर महीने एक हजार रुपए से बढ़ाकर 1250 रुपए का भुगतान शुरू हो चुका है। इसे बढ़ाकर 3 हजार रुपए करने का संकल्प भी जताया जा रहा है। कांग्रेस ने 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने का वायदा किया तो भाजपा सरकार ने उज्जवला योजना में 450 रुपए में देने का ऐलान कर दिया। दोनों दल यह जानते हैं कि महिला और आदिवासी वोटर्स जिस तरफ झुकेगा वही सत्ता पर काबिज हो जाएगा।
मतदाताओं का गणित
- 5 करोड़ 60 लाख 60 हजार 925 कुल मतदाताओं की संख्या
- 2 करोड़ 88 लाख 25 हजार 607 पुरुष मतदाता
- 2 करोड़ 72 लाख 33 हजार 945 महिला मतदाता प्रदेश
सियासी खींचतान
निर्वाचन आयोग ने जिन 29 विधानसभा सीटों पर महिला वोटर्स की संख्या पुरुषों की तुलना में ज्यादा बताई है, उनमें से अभी 19 पर कांग्रेस काबिज है। इनमें से 85 फीसदी सीटें आदिवासी बहुल अंचल की हैं। 9 सीटों पर भाजपा और एक सीट वारासिवनी निर्दलीय के पास है। आदिवासी अंचल की और भी ऐसी सीटें हैं जहां कमोबेश दोनों ही प्रमुख दलों के बीच राजनीतिक खींचतान की स्थिति बनी हुई है। पिछली बार ट्राइबल वोटर्स के मुंह फेर लेने से भाजपा को बहुमत से वंचित होना पड़ा था।
आदिवासियों को साधने दोनों पार्टियों के जतन
आदिवासी वोटर्स को साधने में भाजपा- कांग्रेस लगी हुई हैं। भाजपा ने हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर किया वहीं टंट्या मामा भील और बिरसा मुंडा की स्मृति में भी कार्यक्रम हुए। जबलपुर में गुरुवार को रानी दुर्गावती स्मारक के भूमिपूजन में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए। वहीं कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी की सभा धार जिले केमोहनखेड़ा में हुई। इससे धार, रतलाम, आलीराजपुर और बड़वानी के इलाकों पर कांग्रेस ने अपनी चुनावी पकड़ जमाना शुरू कर दी है।
निर्णायक हैं आदिवासी
प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं लेकिन करीब 7 दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां अजजा वोटर्स हार-जीत का फैसला करने में सक्षम है।
आदिवासी सीटों पर ऐसे बदले समीकरण
2003 : आदिवासियों के लिए 41 सीट रिजर्व थी। इसमें से भाजपा ने 37 सीटें जीती थी जबकि कांग्रेस सिर्फ दो सीट पर सिमट गई थी। इसके अलावा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने दो सीट जीती थीं।
2008 : आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या बढ़कर 47 हो गई। इसमें भाजपा ने 29 सीटें जीतीं। वहीं कांग्रेस की सीटें बढ़कर 17 पहुंच गई। इस साल कांग्रेस को इन सीटों पर छोटी बढ़त मिल गई थी
2013 : 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती। पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा की दो सीटें बढ़ी। वहीं कांग्रेस की सीटें बढ़कर 15 पहुंच गई।
2018 : 47 आरक्षित सीटों में से कांग्रेस ने 30 सीटें जीती, भाजपा को सिर्फ 16 सीटें ही मिली। एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीता।
महिलाओं के दबदबे वाली ट्राइबल और शहरी सीटें
बिछिया, निवास, बैहर, परसवाड़ा, कुक्षी, सैलाना, पानसेमल, आलीराजपुर, बालाघाट, मंडला, बदनावर, मनावर, वारासिवनी, रतलाम सिटी, कटंगी, पेटलावद, बरघाट, डिंडौरी, जोबट, झाबुआ, थांदला, पुष्पराजगढ़, छिंदवाड़ा, शाहपुरा, उज्जैन उत्तर, जावरा, इंदौर-4 एवं सेंधवा।