जहां कम अंतर से फिसल गई थी जीत वहां प्रत्याशियों की धड़कनें फिर तेज
भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा का मतदान होने के बाद भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपनी सीटों के हिसाबकित् ााब में जुटे हैं। 3 दिसंबर को मतगणना के बाद नतीजों का ऐलान होगा। लेकिन करीब ढाई-तीन दर्जन उन सीटों पर प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं जहां पिछले चुनाव 2018 में बारीक अंतर से जीत-हार का फैसला हुआ था। इनमें 10 सीटें तो ऐसी थीं जहां एक हजार वोटों से भी कम अंतर पर फैसला हो गया था। एक दर्जन सीटों पर जीत-हार के मार्जिन से ज्यादा वोट तो ‘नोटा’ को मिले थे। इस बार ऐसी सीटों पर चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा राजनीतिक पंडित मनन में जुटे हैं। प्रदेश में भाजपा ने इस बार अपने नेटवर्क के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मदद मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए हरसंभव जतन किए क्योंकि 2018 में बहुत बारीक अंतर से भाजपा बहुमत से पीछे रह गई थी। इसी तरह कांग्रेस की चुनावी टीम ने भी ऐसी सीटों पर फोकस किया है जहां कम अंतर से हार हुई थी।
दोनों ही दल सशंकित
पिछले विधानसभा चुनाव में ढाई दर्जन क्षेत्रों में तीन हजार से भी कम वोटों के अंतर से फैसला हो गया था। ग्वालियर दक्षिण में तो कांग्रेस प्रत्याशी ने महज 121 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। कम मार्जिन से जीत-हार वाली 15 सीटों पर भाजपा प्रत्याशी जीते थे जबकि 12 सीटों पर कांग्रेस ने विजय पताका फहराई थी। इस बार दोनों ही दल इसलिए भी सशंकित हैं कि कई क्षेत्रों में बसपा, सपा के अलावा निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनावी नतीजों पर अपना असर डालेंगे।
ये हैं कम मार्जिन वाली सीटें
पिछले चुनाव में जिन सीटों पर कम मार्जिन से चुनावी नतीजे सामने आए थे इस बार वहां मतदाताओं का भरोसा जीतने के लिए भाजपा और कांग्रेस अतिरिक्त मेहनत करते रहे। जिन सीटों पर कम अंतर से फैसले हुए उनमें दतिया, ग्वालियर, विजयपुर, इंदौर-5, ग्वालियर ग्रामीण, कोलारस, मुंगावली, बीना, दमोह, चंदला, राजनगर, गुन्नौर, देवतालाब, जबलपुर उत्तर, ब्यावरा, आगर, जावरा, सुवासरा, जोबट, सांवेर, राजपुर, मांधाता, नेपानगर, टिमरनी, मैहर और नागौद भी शामिल हैं।
क्षेत्र और जाति के समीकरण
इस बार ज्यादातर क्षेत्रों में कांटे की टक्कर और कई सीटों पर दोनों ही दलों के बागियों की मौजूदगी के कारण त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति होने से नतीजों को लेकर पसोपेश बना हुआ है। नतीजे आने में अभी 10 दिन का समय है, इस बीच दोनों ही दलों के नेता नतीजों को लेकर उधेड़बुन में लगे हैं। मतदान प्रतिशत के अलावा क्षेत्रीय, जातीय और सियासी समीकरण के हिसाब से कांग्रेस और भाजपा जीत को लेकर दावे- प्रतिदावे करने में जुटे हैं। बसपा और सपा को भी अच्छे समर्थन की उम्मीद है।
भाजपा को मिले थे ज्यादा वोट फिर भी सीटें थीं कम
2018 के चुनाव में भाजपा को कांग्रेस से 47 हजार 827 ज्यादा वोट मिलने के बावजूद सीटें कम रह गईं थीं। भाजपा को 109 और कांग्रेस को 114 सीटें मिली थीं। चुनाव आयोग के आंकड़ें बता रहे है कि भाजपा को एक करोड़ 56 लाख 42 हजार 980 वोट मिले। 2013 के मुकाबले कांग्रेस का वोट 4.6 प्रतिशत बढ़ा था जबकि भाजपा के वोटों में 3.78 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।