पर्यटन स्थलों को कब मिलेगी पहचान, गंभीरता नहीं बरत रहा विकास निगम
जबलपुर। शहर के पर्यटन स्थलों को पहचान नहीं मिल पाई,न ही मठ मंदिरों से पर्यटकों को जोड़ने की योजना ही अमल में आ पाई। पर्यटन विकास निगम का लचर रवैया इस दिशा में निराश करने वाला रहा। वहीं नगर निगम की स्मार्ट सिटी प्रबंधन भी पर्यटन से रोजगार दिलवाने केदावे में पूरी तरह से फेल साबित हुई। शहर में संगमरमरी वादियों के बीच बसा भेड़ाघाट कहने को विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है मगर इसे अब तक पर्यटन के नक्शे में जगह नहीं मिली है। यहां पर मदनमहल किला,बैलेंस रॉक,कल्चुरी कालीन तेवर के प्राचीन मंदिर,त्रिपुर सुंंदरी मंदिर,कटाव फाल जैसे आकर्षण तो है मगर यहां पर पर्यटक आएं इसके लिए प्रयास नहीं हुए हैं।
यह योजना भी नहीं पहन सकी अमली जामा
अमरकंटक से अलीराजपुर तक नर्मदा किनारे के विहंगम दृश्यों को पर्यटकों तक पहुंचाने की पहल शुरू की गई जिसके अंतर्गत देशी विदेशी पर्यटकों को नर्मदा के बड़े शहरों के किनारे वाले आश्रमों मंदिरों में रुकने की व्यवस्था की जा सके। इसके लिए पर्यटन विभाग ने नर्मदा नदी के किनारे सभी आश्रमों,धर्मशालाओं,प्रसिद्ध मंदिरों की सूची तैयार करने की योजना बनाई थी। पर्यटन क्षेत्र से नर्मदा का सीधा जुड़ाव करने का यह नया प्रयोग किया गया था,क्योंकि अभी तक नर्मदा के तटीय क्षेत्रों वाले शहरों को लेकर पर्यटन क्षेत्र के लिए किसी तरह का ठोस काम देखने नहीं मिला था।
अन्य राज्यों के पर्यटकों को जोड़ना था
प्रदेश से जुड़े दूसरे राज्य खासतौर से गुजरात,महाराष्ट्र,बंगाल,कोलकाता, दक्षिण भारत से बससे ज्यादा पर्यटक नर्मदा परिक्रमा के लिए आते हैं। धार्मिक क्षेत्रों में भी पर्यटकों की आवाजाही अधिक रहती है। इसी बात को ध्यान में रखकर नर्मदा के पौराणिक व धार्मिक महत्व को रेखांकित करने योजना बनी थीं। परिवार सहित आने वाले इन पर्यटकों को नर्मदा किनारे ठहरने की व्यवस्था की जानी थी।
ये थी योजना
शहर के पर्यटन स्थलों को पहचान दिलाने के लिए आवासीय,गैर आवासीय इकाइयों का संचालन करना,पर्यटकों को पर्यटन स्थल की जानकारी सुलभ कराना,पर्यटन स्थलों पर साहित्य का प्रकाशन करवाना और पर्यटकों को स्थल तक पहुंचने परिवहन सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य संचालित किए गए थे। इनमें किसी भी उद्देश्य के लिए काम नहीं हुआ। इतना ही नहीं जबलपुर के धार्मिक स्थलों को चिन्हित कर उन्हें पर्यटन से जोड़ने का प्लान भी तैयार किया गया था। यह प्लान कहां गायब हो गया जिम्मेदार अधिकारियों को पता ही नहीं है। यही कारण है कि जबलपुर के पर्यटन स्थलों की पहचान देश या देश के बाहर नहीं बन पा रही है। पर्यटन की अपार संभावनाओं के बावजूद इस दिशा में जिम्मेदारों की लापरवाही उद्देश्य को पूरा ही नहीं होने दे रही है।
ये थे उद्देश्य
- आवासीय इकाइयों में आरक्षण
- राज्य के बाहर निगम के सेटेलाइट कार्यालयों से पर्यटकों के लिए विविध पैकेज टूर संचालन
- पर्यटन स्थलों का अखिल भारतीय स्तर पर प्रचार-प्रसार
- पर्यटन स्थलों से जुड़े ट्रेवल्स एजेंट्स, लेखक,फोटोग्राफर्स,विशिष्ट व्यक्तियों के लिए टूर आयोजन
- प्रदेश के पर्यटन क्षेत्रों की व्यापक मार्केटिंग तथा प्रचार- प्रसार की दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय पर्यटन सम्मेलन तथा ट्रेवल मार्ट आदि में भागीदारी।
- पर्यटन विभाग की परामर्श दात्री समिति,संभागीय समिति तथा शासन की पर्यटन संबंधी समितियों द्वारा लिए गए निर्णयों पर कार्रवाई।
- निगम द्वारा प्रदेश के पर्यटन स्थलों पर आवास,खान-पान,परिवहन सुविधा उपलब्ध कराना।
पर्यटन स्थलों केप्रचार प्रसार के लिए हम काम कर रहे हैं। जहां तक मठ-मंदिरों से पर्यटकों को जोड़ने की प्लानिंग है उसमें काम हो रहा है। विनोद गोंटिया,अध्यक्ष,मप्र टूरिज्म कार्पोरेशन