गिरती रैंकिंग की वजह बन रहा गीलासूखा कचरा, बिजली उत्पादन भी आधा

गिरती रैंकिंग की वजह बन रहा गीलासूखा कचरा, बिजली उत्पादन भी आधा

जबलपुर। शहर में नगर निगम के लाख प्रयासों के बावजूद जिम्मेदारों ने कचरा कलेक्शन में गीले-सूखे कचरे का वर्गीकरण कार्य में दिलचस्पी नहीं ली। वहीं लोगों में भी इस दिशा में जागरूकता नहीं बन पाई।अब जबकि स्वच्छता सर्वेक्षण 2023 के लिए केन्द्रीय टीम कभी भी शहर आ सकती है और गीले-सूखे कचरे के खासे अंक हैं तो रैंकिंग में खतरा नजर आ रहा है। इस व्यवस्था में कमी का खामियाजा ये हुआ कि न तो पर्याप्त मात्रा में कचरा कलेक्शन हो पा रहा है और जो हो रहा है उसके चलते कठौंदा के वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में निर्धारित मात्रा में बिजली का उत्पादन भी नहीं हो पा रहा है।

वर्ष 2016 में प्रदेश का इकलौता वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाने की शुरूआत हुई थी। 178 करोड़ रुपए से इसे एस्सेल कंपनी ने लगाया था जो कि शहर से कचरा कलेक्शन का ठेका भी लिए हुए थी। इस प्लांट में 11.5 मेगावाट बिजली प्रतिदिन बनाए जाने की क्षमता है और यही लक्ष्य भी था। इस उद्देश्य को पलीता तब लगा जबकि कचरा कलेक्शन शहर में केवल 450 टन तक ही पहुंचा। पूर्ण क्षमता से बिजली उत्पादन के लिए 600 टन कचरे की जरूरत रही। कुछ समय तक पुराने कचरे के ढेर से कचरा निकाला जाता रहा और कुछ समय कटनी से भी कचरा मंगवाया गया। वर्तमान हालात यह हैं कि प्रतिदिन 5 से 6 मेगावाट बिजली ही प्लांट बना पा रहा है।

गीले-सूखे कचरे की व्यवस्था ही नहीं बना पाए

दरअसल कचरा कलेक्शन करने जो टिपर वाहन घरों-घर जाते हैं उनमें से ज्यादातर में गीला-सूखा कचरा अलग रखने की व्यवस्था ही नहीं है। कई लोग इसी में इलेक्ट्रॉनिक्स वेस्ट भी डाल देते हैं। घर-घर खाद बनाने का प्लान भी फ्लॉप रहा। कहा तो यह भी गया था फैक्ट फाइल कि सूखा कचरा 2.60 रुपए प्रति किलो की दर से लिया जाएगा, मगर आज तक इस व्यवस्था को लागू नहीं किया गया। गंदे पानी को ट्रीटेड कर इसकी धुलाई इत्यादि के काम में प्रदाय किया जाना शुरू नहीं हुआ। इसे गार्डनों में भी सप्लाई किया जाना था।

इंदौर में सीएनजी प्लांट

जबलपुर में अच्छा खासा कचरे से बिजली बनाने वाले प्लांट के होते हुए इसका फायदा नहीं उठा पाने वाले नगर निगम को शायद इस बात से कुछ फर्क पड़े की हमेशा स्वच्छता में नंबर वन आने वाला इंदौर अपने यहां एक ऐसे प्लांट को लगवाने जा रहा है जिसमें 500 टन गीले कचरे से सीएनजी बनेगी। पीपीपी प्रोजेक्ट से लगने वाले इस प्रोजेक्ट से नगर निगम को क रोड़ों रुपए की आय होनी हैऔर पास से कोई राशि भी उसे नहीं लगाना है।

फैक्ट फाइल

  • 600 टन कचरे की नियमित है जरूरत 
  • 450 टन कचरा ही निकल पाता है
  • 11.5 मेगावाट बिजली ब नाने की है क्षमता 
  • 5 -6 मेगावाट बिजली ही बन पा रही है 
  • 05 रुपए प्रति यूनिट की दर से लेती है पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी

इंदौर में सीएनजी बनाने के लिए प्लांट लगाए जाने की जानकारी है,हमारे यहां तो हम पहले से ही कचरे से बिजली बना रहे हैं। शहर से निकलने वाले कचरे को प्लांट पहुंचाया जाता है, कचरे की कमी होने पर बाहर से भी कचरा बुलवाया जाता है। भूपेन्द्र सिंह, स्वास्थ्य अधिकारी, ननि