हम विवश हैं कि मासूम को न्याय नहीं दिला सके

हम विवश हैं कि मासूम को न्याय नहीं दिला सके

जबलपुर। विशेष न्यायाधीश नीलम संजीव श्रृंगीऋषि की अदालत ने मासूम से दुष्कर्म व हत्या के मामले में अहम आदेश दिया है। अदालत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि महज दो वर्ष की मासूम को उसके माता-पिता के बीच से उठाकर ले जाना और दुष्कर्म के बाद हत्या जैसे संगीन मामले में सही अपराधी का न पकड़ा जाना न्याय की हानि है। विवेचक द्वारा उचित विवेचना न करने के कारण न्यायालय विवश है कि वह छोटी बच्ची के साथ किए गए अपराध के वास्तविक दोषियों को दंडित नहीं कर सका न ही उस छोटी बच्ची को न्याय दिला सका।

अदालत ने अपने आदेश में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया कि केवल प्रकरण का निराकरण करना पुलिस का कर्तव्य नहीं है। यदि पुलिस सही अपराधी तक नहीं पहुंचती है तब न्याय की हानि होती है और न्याय प्रक्रिया पर जन सामान्य का अविश्वास होता है। ऐसी स्थिति में समाज भी असुरक्षित हो जाता है। यद्यपि ऐसे मामले में व्यक्ति भावुक हो जाता है तथापि न्यायालय का यह दायित्व है कि वास्तविक अपराधी को सजा मिले किंतु ऐसे व्यक्ति को सजा न दी जाए जिसने वास्तव में अपराध नहीं किया है।

अदालत ने अपने फैसले में साफ किया कि इस मामले में शहपुरा पुलिस ने शुभम उर्फ बच्चू मल्लाह व सोनू ठाकुर गौंड़ को आरोपी बनाया था। लेकिन अभियोजन युक्ति युक्त संदेह से परे यह प्रमाणित करने में असफल रहा है कि 16 सितंबर 2020 से 17 सितंबर 2020 के बीच उक्त जघन्य श्रेणी का अपराध इन्हीं युवकों ने किया था। उन्हें संदेह का लाभ देते हुए दोष मुक्त किया जाता है। मासूम अब इस दुनिया में नहीं रही, अत: उसके पुनर्वास का बिंदु बेमानी हो गया है पर उसके माता-पिता ने अपनी दो वर्ष की मासूम बेटी को खोया था इसलिए संभावित मानसिक व शारीरिक आघात की प्रतिपूर्ति के लिए दो लाख रुपए प्रतिकर राशि दिए जाने का आदेश पारित किया जाता है।