15वें वित्त आयोग की राशि को ठिकाने लगाने टुकड़े-टुकड़े कर लगा रहे पानी-सीवर के टेंडर
ग्वालियर। अमृत योजना में 730 करोड़ रुपए खर्च करने वाले निगम अधिकारियों द्वारा गड़बड़झाले पर कुछ भी न होने पर हौसले बुलंदी पर हैं। यही कारण है कि मेयर, एमआईसी, परिषद द्वारा बड़ी राशि के टेंडर स्वीकृति के अधिकारों का हनन कर अधिकारियों द्वारा 15वें वित्त आयोग की राशि को टुकड़े-टुकड़े कर टेंडर लगाए जा रहे हैं। जिसके चलते अधिकारियों पर सवाल उठ रहे हैं कि सीवर- पानी जैसे कामों से जुटे एक ही नेचर के कार्य होने पर अलग- अलग टेंडर क्यों लगाए जा रहे हैं।
नगर निगम द्वारा 15वें वित्त आयोग से ग्रांट से मिली 51 करोड़ की राशि से वर्तमान में लगभग 24 करोड़ के लगभग 15 कार्यों के टेंडर लगाए जा चुके हैं और अगले एक-दो दिन में लगभग इतनी ही राशि के नए टेंडर लगाने की तैयारी है। जानकारों की मानें तो केन्द्र सरकार से मिलने वाली ग्रांट के चलते तीन किश्तों में निगम को 153 करोड़ रुपए यानि प्रत्येक वर्ष 51 करोड़ की राशि मिल रही है और उसी के चलते निगम अधिकारी सीवर-पानी के लिए जारी अमृत योजना की राशि 730 करोड़ के साथ ग्रांट राशि को ठिकाने लगाने के चलते योजना में छूटे हुए कार्यों को पूरा करने की प्लानिंग पर काम कर रहे हैं। अहम बात यह है कि वर्तमान में 913 करोड़ की अमृत. 02 की डीपीआर बन रही है, फिर भी ऐसे में अधिकारी केवल ग्रांट की राशि को निपटाकर ठिकाने लगाने का काम कर रहे हैं।
छोटे टेंडर लगाकर किया अधिकारों का हनन
निगम जानकारों की मानें तो निगमायुक्त को 2 करोड़ तक की फाइल स्वीकृति का अधिकार है और उसके बाद मेयर को 5 करोड़, एमआईसी को 10 करोड़ व निगम परिषद को उससे अधिक राशि के कार्यों की स्वीकृति के अधिकार हैं, लेकिन निगम अधिकारी जानबूझकर एक ही नेचर के 2 करोड़ से नीचे के टेंडर लगाकर मेयर, एमआईसी व परिषद के अधिकारों का हनन कर रहे हैं।
एक ही नेचर के एक बार में कई टेंडर लगाना अपने आप में सवाल खड़े करता है, यदि राशि अधिक होती है, तो टेंडर स्वीकृति के लिए मेयर, एमआईसी व परिषद को अधिकार है और उसमें लाकर स्वीकृति लेने चाहिए। -मनोज तोमर, सभापति, नगर निगम