नाग द्वार से जनजातीय दुनिया में दाखिल होंगे दर्शक, बस्तर के कारीगर दे रहे फाइनल टच
संस्कृति विभाग के अंतर्गत आने वाले जनजातीय संग्रहालय में दर्शक जल्द ही नाग द्वार से जनजातीय दुनिया में दाखिल होंगे। दरअसल, इन दिनों जनजातीय संग्रहालय के प्रवेश द्वार को संवारने का काम तेजी से चल रहा है। बस्तर के कारीगर फाइनल टच देने में जुटे हुए हैं। प्रवेश द्वार के समीप लगे आधार स्तंभ पर रखने के लिए 3 क्विंटल लोहे के सरिये से 35 फीट लंबे 2 सर्प की आकृति बनाई जा रही है। इधर सर्प के अलावा मकड़ी भी लगाई जाएगी। चूंकि बीते कई दिनों से प्रवेश द्वार को संवारने का काम चल रहा है। इसके चलते लकड़ी का कौआ और केकड़े की आकृति को आधार स्तंभ पर बनाकर लगा दिया गया है, जो दर्शकों का अपनी तरफ ध्यान आकर्षित कर रहा है। इसके अलावा लकड़ी पर जनजाति जीवन के परिवेश को दर्शाती एक आकृति भी जल्द दर्शकों के सामने प्रस्तुत की जाएगी। संग्रहालय के क्यूरेटर अशोक मिश्रा ने बताया कि लगभग एक माह के अंदर प्रवेश द्वार की सूरत अलग ही नजर आएगी, जिसमें नए जीवों की उत्पत्ति का आख्यान देखने को मिलेगा।
सर्प की आकृति का 70 फीसदी काम हुआ पूरा
बस्तर से आए कलाकार सुभाष पोदाम ने बताया कि तीन क्विंटल लोहे से सर्प की दो आकृति को बनाने का काम 70 फीसदी पूरा हो चुका है। अब सिर्फ रंगरोगन का काम शेष है। अगले 15 दिनों में यह काम भी पूरा हो जाएगा। इसके बाद मकड़ी को बनाने का काम शुरू करेंगे। कलाकार धोकल सिंह, बसंत उइके, ऋषिराम, मनेष, अर्जुन, मानसिंह इन आकृतियों को बना रहे हैं।
लकड़ी पर उकेरी जनजाति परिवेश की आकृति
कलाकारों ने लकड़ी पर जनजाति परिवेश की आकृति को बड़ी ही खूबसूरती से उकेरा है। इस आकृति में बच्चे, महिलाएं, पुरूष और उनकी दिनचर्या में किए जाने वाले सभी काम करते हुए इनको देखा जा सकता है।
कौआ और केकड़ा ध्यान कर रहा आकर्षित
प्रवेश द्वार के समीप आधार स्तंभ पर सौंदर्यीकरण के तहत लकड़ी की बनाई गई कौआ और केकड़े की आकृति दर्शकों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। लोग गेट पर खड़े होकर इन आकृतियों को बड़े ध्यान से देखते हैं। आधार स्तंभ से केकड़ा बड़ी ही खूबसूरती से लिपटा हुआ है। वहीं कौआ दूसरे स्तंभ पर खड़ा हुआ है।
मुख्य द्वार के पास होगा धरती की उत्पत्ति का आख्यान
पृथ्वी की उत्पत्ति को लेकर जनजातियों में कई मिथक हैं, जिनमें जीव-जंतुओं की बड़ी भूमिका है। जनजातियों में मान्यता है कि इस सृष्टि में पहले जल ही जल था। जल प्रलय के बाद भगवान शिव के आदेश पर केकड़े ने पृथ्वी की खोज की थी। इसके बाद कौआ ने सर्प और मकड़ी जैसे जीवों को खोजा था। इस प्रकार जीवन के रूप में सबसे पहले जीव अस्तित्व में आए और इनसे मानव जाति का उद्भव हुआ है। मिथक है कि मनुष्य का विकास सर्प से हुआ है। इसीलिए सर्प की बड़ी और केकड़ा, मकड़ी और कौआ की छोटी आकृति लगाई जा रही है। इससे दर्शक क्रमबद्ध तरीके से धरती के बाद जीवों और उसके बाद मनुष्य की उत्पत्ति के बारे में जानने के बाद संग्रहालय के भीतर जनजातीय कला और संस्कृति के बारे में जान सकेंगे। - अशोक मिश्रा, क्यूरेटर, ट्राइबल म्यूजियम