हिंसक बना देता है अल्कोहल और एनर्जी ड्रिंक का कॉकटेल
न्यूयॉर्क। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ऐसे लोग जो शराब का सेवन एनर्जी ड्रिंक मिलाकर करते हैं, उनके शारीरिक एवं सेक्सुअली रूप से आक्रामक होने की आशंका बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे लोगों के द्वारा मारपीट करने की संभावना 6 गुना ज्यादा होती है। क्लिनिकल साइकोलॉजी रिव्यू में प्रकाशित इस अध्ययन में जनवरी 2002 से मार्च 2023 के बीच किए गए 17 अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों का हवाला दिया गया है। इन अध्ययनों में 25 वर्ष या उससे कम उम्र के महिला व पुरुषों के एनर्जी ड्रिंक के साथ अल्कोहल लेने के बाद उनके शारीरिक एवं शाब्दिक आक्रामक व्यवहार, यौन हमले या जबरदस्ती तथा उत्पीड़न से संबंधित व्यवहार पर फोकस किया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार, अमेरिका, स्लोवाकिया एवं इटली के रिसर्च में यह पाया गया कि इस तरह के कॉकटेल का सेवन करने वाले उन लोगों की तुलना में 6 गुना अधिक हिंसक होते हैं, जो कॉकटेल के स्थान पर सीधे शराब का सेवन करते हैं।
सिर्फ शराब पीने वालों से 5 गुना अधिक झगड़ालू :
आॅस्ट्रेलिया में किए गए दो अध्ययनों में यह पाया गया कि पिछले वर्ष अल्कोहल एवं एनर्जी ड्रिंक मिलाकर पीने वाले 9 प्रतिशत लोगों ने मारपीट की, जबकि सिर्फ शराब पीने वाले 3.5 प्रतिशत लोग ही इस तरह की गतिविधि में शामिल पाए गए। अमेरिका में 2008 में किए गए अध्ययन में यह पाया गया है कि अल्कोहल व एनर्जी ड्रिंक के मिश्रण का सेवन करने वाले लोगों के दूसरे लिंग पर हावी होने की कोशिश करने की संभावना उन लोगों की तुलना में दोगुनी होती है, जो शराब बिना किसी मिश्रण के पीते हैं।
अलग-अलग है वैज्ञानिकों की राय
कई दशकों से वैज्ञानिकों के बीच इस बात को लेकर मतभेद है कि शराब की अल्प मात्रा के सेवन से कुछ फायदे भी होते हैं। कुछ अध्ययनों में यह बताया गया है कि शराब या बीयर का रोजाना सीमित मात्रा में सेवन कई रोगों से बचाता है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैज्ञानिकों ने इसी माह एक चेतावनी जारी की है कि शराब का अल्प मात्रा में सेवन भी नुकसानदेह हो सकता है। संगठन के अनुसार इसके कारण पूरी दुनिया में हर साल 30 लाख लोगों की मौत होती है।
आम जन-मानस में यह बड़ा भ्रम है कि शराब की थोड़ी मात्रा हमारे स्वास्थ्य को बेहतर करती है। ऐसे उत्तेजक ड्रिंक्स हमारे नैतिकता के ब्रेक्स को खत्म कर देते हैं, जिससे सेक्सुअल असॉल्ट की संभावना बढ़ जाती है। - डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक, भोपाल