ग्लोबल वार्मिंग को रोकने 2 डिग्री नीचे लाना होगा तापमान
बर्न। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने अपनी अंतिम चेतावनी जारी करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए विभिन्न देशों द्वारा किए जा रहे प्रयास पृथ्वी के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। ऐसे में इसे 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना कठिन होता जा रहा है। आईपीसीसी ने अपनी ताजा सिंथेसिस रिपोर्ट में कहा कि शायद ही ऐसा कोई वैज्ञानिक परिदृश्य होगा, जहां दुनिया इस दशक के दौरान तापमान में वृद्धि, कंपाउंड हीटवेव, सूखे और समुद्र के स्तर में वृद्धि से बच सके। बता दें, पृथ्वी के औसत तापमान में 1.5 या 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को औद्योगिकरण से पहले के तापमान के आधार पर मापा जाता है। बता दें, स्विट्जरलैंड के इंटरलेकन शहर जलवायु परिवर्तन के संकट बैठक आयोजित की गई, जिसमें 195 देशों के प्रतिनिधि ने भाग लिया। इस मौके पर जलवायु परिवर्तन के संकट पर संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्था आईपीसीसी की सिंथेसिस रिपोर्ट को अंतिम रूप दे रहे हैं।
अब तक आईपीसीसी की 6 रिपोर्ट हो चुकी हैं जारी
आईपीसीसी की स्थापना 1988 में की गई थी, तब से लेकर अब तक इस संस्था ने 6 रिपोर्ट जारी की हैं। हर रिपोर्ट को बनाने में छह से आठ साल लगते हैं। हर बार रिपोर्ट का आकार, उसमें बताई गई समस्याएंदिक् कतें बढ़ती चली गर्इं। साथ ही बढ़ रहा था प्रदूषण और ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन।
उत्सर्जन घटाने के लिए और करना होगा फोकस
साल 2018 में आईपीसीसी ने चेतावनी दी थी कि उत्सर्जन को 2030 तक आधा करना होगा। उस समय आईपीसीसी ने साल 2010 के उत्सर्जन से तुलना की थी, अगर उत्सर्जन 2030 तक आधा होता है, तो बढ़ते हुए तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोका जा सकता है, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। उत्सर्जन लगातार बढ़ रही है।
सभी देशों की सरकारों को बनाना होगा कार्बन बजट
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक पिछले साल ही यह 1 फीसदी से थोड़ी ज्यादा बढ़ गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर की सरकारों को अपना कार्बन बजट बनाना होगा। उसे कम करते जाना होगा। दुनिया को आईपीसीसी की बताई हुई सीमा में ही उत्सर्जन को लाना होगा, नहीं तो ग्लोबल हीटिंग की वजह से कई आपदाएं आएंगी।
वैज्ञानिक बोले- चेतावनी तो कई बार दी, अब अमल किया जाए
साल 2040 तक की राह दिखाए जाने के बाद अब निकट भविष्य में आईपीसीसी की बैठक होने संभावना काफी कम है। आईपीसीसी के इस कार्य के लिए करीब एक हजार शोधकर्ता एवं वैज्ञानिक जुड़े हैं। इनमें कई मानते हैं कि पर्याप्त वैज्ञानिक चेतावनी जारी किए जा चुके हैं और अब समय आ गया है कि उन पर अमल किया जाए। आईपीसीसी ने कहा है कि एआर5 चक्र के बाद से ही जलवायु संबंधी नीतियों और कानूनों में लगातार विस्तार हुआ है, लेकिन अभी भी कमियां और चुनौतियां अब भी बरकरार हैं।
रिपोर्ट से होगा लाभ
इस रिपोर्ट की मदद से हर देश के पर्यावरण मंत्री और सरकार फैसले बदल सकते हैं। नई नीतियां बना सकते हैं। इस रिपोर्ट इस साल 30 नवंबर को संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में होने वाले सीओपी28 यानी अगले यूएन क्लाइमेट समिट में पेश किया जाएगा।