‘अपनों’ से ठुकराए बच्चों को संस्कारों से सींच रही ये यशोदाएं
भोपाल। मां, बच्चे की पहली गुरु होती है। वह बच्चों में मानव मूल्य, संस्कार डालने में अहम भूमिका निभाती है। लेकिन वह बच्चे जो कठिन परिस्थितियों की मार झेलकर एसओएस बालग्राम पहुंचते हैं वह इन सबसे वंचित न रहें, इसकी जिम्मेदारी उठा रही हैं एसओएस मदर्स। खजूरीकलां में एसओएस बालग्राम में 16 घर हैं। हर मां के साथ छह से आठ बच्चे रहते हैं। यह मदर्स अलग-अलग क्षेत्र और धर्म की हैं और इनके बीच बड़े हो रहे बच्चे अपनी यशोदा मां के जरिए जड़ों से जुड़े संस्कार पा रहे हैं। मदर्स डे पर पढ़िए ऐसी ही माताओं की कहानी।
बच्चों में डाल रहीं संस्कार
बालग्राम के हाउस ज्योति की सुनीता ओरमाड़े के पास एक लड़के सहित 7 बच्चे हैं। सुनीता महाराष्ट्रीयन हैं। वह बताती हैं, वह अपने गांव का एक त्योहार बच्चों के साथ मनाती हैं, जिसमें बैल की जोड़ी की पूजा कर किसान के जीवन में उनका महत्व बताया जाता है। इससे बच्चों में जानवरों के प्रति प्रेम भाव बढ़ा है। सुनीता 10 साल पहले यहां आई थीं और 15 बच्चों की मां हैं। उनके अनुसार, मेरे बच्चे एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। जो बाहर हैं, वह यहां रह रहे बच्चों को पढ़ने और कॅरियर बनाने में सहयोग करते हैं।
ऊंचे मुकाम पर पहुंचाया
आशियाना हाउस की मां रहीसा शेख 33 साल से एसओएस बालग्राम में हैं। उनके 23 बच्चों में से कुछ की शादियां हो गई हैं। रहीसा बताती हैं कि ज्यादातर बच्चे ऊंचे मुकाम पर हैं। उनके भी बच्चे हो चुके हैं और नाती-पोते भी दुआस लाम करने आते हैं। अभी मेरे पास 7 लड़कियां हैं, इनमें तीन मुस्लिम हैं। लेकिन सभी एक साथ इस तरह रहते हैं कि किसी मेें कोई भेद नहीं है। ईद की सेवइयां और दिवाली की मिठाई सब मिलकर खाते हैं। जो बेटियां ससुराल में हैं, उनकी भी वहां तारीफ होती है कि बच्चियां सारे रीतिरिवाज और संस्कार सीख कर आई हैं।
बच्चों को सिखाई मातृभाषा
आकांक्षा हाउस की मदर रीना छेत्री ओडिशा से हैं। उनके पास अभी आठ बेटियां हैं। रीना के साथ रहते-रहते यह सभी बच्चियां उड़िया भाषा के कई शब्द सीख गई हैं। रीना बताती हैं- हमारा एक खास त्योहार होता है नुआखाई। नई फसल के आने पर मनाए जाने वाले इस त्योहार के जरिए बच्चे अन्न का महत्व सीखते हैं। उन्होंने बताया कि मेरे बच्चे धीरे-धीरे इस दिन बनने वाले सारे पकवान बनाना सीख गए हैं। उनके कुछ बच्चे बड़ी कंपनी में काम कर रहे हैं और कुछ डिप्लोमा कोर्स में भी हैं। एसओएस में वह दस साल से रह रही हैं।
बच्चों को जड़ों से जोड़ रहीं
नवजीवन हाउस की मदर कृष्णानाथ असम की रहने वाली हैं और पिछले 23 साल से एसओएस बालग्राम में रह रही हैं। वह बताती हैं, बीहू में पहनी जाने वाली परंपरागत ड्रेस बच्चों को बहुत पसंद आती है। वह खुद भी पहनते हैं और मुझे भी पहनाते हैं। तीन बेटियों की शादी हो चुकी है। तीनों बहुत खुश हैं और मिलने आती हैं। वहीं कुछ बच्चे अभी बड़ी कंपनी के साथ काम कर रहे हैं। कोशिश यही रहती है कि सभी बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़े रखें और विभिन्न संस्कृति, रीति-रिवाजों के साथ अच्छा इंसान बनाएं।