हर्रा, बहेड़ा, आंवला, अचार, महुआ सहित सफेद मूसली जैसी वनौषधि की उपज घटी
जबलपुर। जंगलों में धीरे-धीरे लुप्त हो रहीं वनौषधि प्रजातियों के कारण इन पर आश्रित ग्रामीणों विशेषकर जनजातियों के समूह की आजीविका बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। जलवायु परिवर्तन, जंगली पेड़ों की लगातार कटाई तथा अप्राकृतिक तरीके से लगातार दोहन के चलते हर्रा, बहेड़ा, आँवला, अचार चिरौंजी, महुआ, सफेद मूसली, बैचांदी, मालकांगनी, वायाविड़ग, गुड़मार, सलई गोंद, शतावर, पीलू मिस्वाक जैसे वनौषधीय पौधे संकट की श्रेणी में आ गए हैं। इससे न सिर्फ ग्रामीण स्वास्थ्य विशेषकर पारंपरिक उपचार के लिए उपलब्धता में कमी हो रही है तो वहीं दूसरी ओर इनकी उपज पर आश्रित वनवासियों की आजीविका पर लगातार असर पड़ रहा है। पिछले 20 से 25 वर्षों में मध्यप्रदेश के वनों में पाए जाने वाली वनौषधियों में 60 से 70 प्रतिशत की कमी देखी जा रही है। यह आंकड़ा यूनडीपी की सर्वे रिपोर्ट का है।
मध्यप्रदेश में आईयूसीएन के साथ वनों के पास कैम्प वर्कशॉप करके भी पता चलता है कि वनों में पाए जाने वाले औषधीय पौधे स्थानीय रूप में एवं क्षेत्रीय रूप में दुर्लभ, विलुप्त एवं संकटग्रस्त श्रेणी में आ गए हैं। हालांकि इन 20 वर्षों में हमारे औषधीय पौधों की खेती का रकबा 80 प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन यह भी देखा गया है कि, आज भी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय औषधीय पौधों के बाजार में वनौषधि की मांग ज्यादातर वनों में पाए जाने वाले औषधीय पौधों की जड़ी- बूटी की है। यह आँकड़ा दर्शाता है कि, 80 प्रतिशत औषधीय पौधे (जड़ी बूटी) का दबाव वनों में पाए जाने वाले वनौषधीय पौधों का है।
मात्र 20 प्रतिशत भाग की खपत देश-विदेश में
खेती से औषधीय पौधों की उपज के मात्र 20 प्रतिशत भाग की ही राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खपत हो पा रही है। वनों में पाए जाने वाली वनौषधि पूर्णत: जैविक होती है। औषधीय पौधों की खेती में समस्या यह है कि, हम जैविक पद्धति से खेती तो कर रहे हैं, लेकिन अन्य खेतों में डाले गए रसायनिक खाद बरसात के मौसम में हमारे औषधीय पौधें की खेती को पूर्णत: जैविक नहीं रहने देते हैं, जिससे हमें राष्ट्रीय बाजार, आयुर्वेदिक फार्मास्युटिकल कम्पनी एवं आयात निर्यात में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। विनाश विहीन विदोहन तकनीकी के माध्यम से वनों में पाये जाने वाले औषधीय पौधों से फल, कन्द, पत्तियाँ, गोंद एवं छाल प्राप्त कर सकते हैं।
वनों में प्राकृतिक औषधि से संबंधित यूएनडीपी की जो रिपोर्ट आई हैं, उससे यह खुलासा हुआ है, जो कि बेहद ही चिंताजनक है, इसलिए सभी को प्रयास करना होगा कि, कम से कम वन काटे जाएं। -डॉ सुशील कुमार उपाध्याय केन्द्रीय सहसुविधा केन्द्र मध्य क्षेत्र, आयुष मंत्रालय जबलपुर