तत्कालीन महाराष्ट्र गवर्नर ने नहीं लिया था सही फैसला : सुप्रीम कोर्ट

तत्कालीन महाराष्ट्र गवर्नर ने नहीं लिया था सही फैसला : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश के संघीय ढांचे को मजबूत करने दो महत्वपूर्ण फैसले सुनाए। एक महाराष्ट्र के सियासी संकट को लेकर, तो दूसरा दिल्ली में सर्विसेज पर कंट्रोल को लेकर। उसके फैसलों से जहां महाराष्ट्र में सीएम एकनाथ शिंदे की सरकार बाल-बाल बच गई, वहीं दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को बड़ी जीत मिली। हालांकि, उद्धव ठाकरे को इस सुप्रीम फैसले से निराशा हाथ लगी। कोर्ट ने उनकी सरकार को बहाल करने से मना कर दिया। फैसले की सबसे बड़ी बात ये है कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे, लेकिन उनकी ये जीत उद्धव ठाकरे के इस्तीफे की वजह से हुई। कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने μलोर टेस्ट का सामना ही नहीं किया। खुद ही इस्तीफा दे दिया। ऐसे में कोर्ट इस्तीफा रद्द नहीं कर सकती है।

16 विधायकों की अयोग्यता का मामला बड़ी बेंच को सौंपा

सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों की अयोग्यता के मामले को 7 जजों की बड़ी बेंच को रेफर कर दिया। उद्धव ठाकरे गुट ने पार्टी से बगावत करने की वजह से इन विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की थी। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एम आर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच ने इस मामले में 16 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

उद्धव को μलोर टेस्ट के लिए बुलाना सही नहीं था

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का उद्धव को μलोर टेस्ट के लिए बुलाना सही नहीं था। राज्यपाल ने शिवसेना के उन विधायकों के गुट की बात पर भरोसा करके गलती की, जिन्होंने कहा था कि उद्धव के पास विधायकों का समर्थन नहीं है।

स्पीकर का गोगावले को शिवसेना व्हिप बनाना गलत

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि शिंदे गुट के भगत गोगावले को शिवसेना का व्हिप नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला कानूनन गलत था। कोर्ट ने कहा कि स्पीकर ने यह पहचानने की कोशिश नहीं की कि पार्टी की ओर से सुनील प्रभु (उद्धव गुट) आधिकारिक व्हिप हैं या फिर भगत? स्पीकर को उसे ही व्हिप मानना था, जिसे शिवसेना ने नियुक्त किया था।

लैंड, पुलिस व लॉ एंड आॅर्डर को छोड़ सभी सेवाओं पर दिल्ली का कंट्रोल

एक अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि दिल्ली में लैंड, पुलिस और लॉ एंड आॅर्डर से जुड़ी सेवाओं को छोड़कर सभी सेवाओं पर दिल्ली सरकार का ही नियंत्रण होगा। इसमें आईएएस भी शामिल है। इस तरह अब दिल्ली सरकार को अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग का भी अधिकार मिल गया है। अभी तक दिल्ली के अफसर सीधे एलजी को रिपोर्ट कर रहे थे। केजरीवाल सरकार आरोप लगाती थी कि कई अफसर मंत्री के बुलाने के बावजूद मीटिंग में नहीं जाते थे।

लोकतंत्र व संघवाद संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है’

13 साल की नौकरी में कमाई अकूत संपत्ति पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष ने जारी किए निर्देश सीजेआई की अगुआई वाली 5 जजों की बेंच ने एकमत से सुनाए फैसले में कहा कि चुनी हई सरकार के पास प्रशासन पर कंट्रोल होना चाहिए। बेंच ने 2019 में जस्टिस अशोक भूषण के सुनाए फैसले से असहमति जताई, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली सरकार के पास सेवाओं को लेकर कोई शक्तियां नहीं होंगी। सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि लोकतंत्र और संघवाद संविधान के मूल ढांचे के हिस्से हैं।

एक्शन में दिल्ली सरकार, सेवा सचिव आशीष मोरे को हटाया

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण का अधिकार मिलने के बाद दिल्ली सरकार एक्शन में आ गई है। दिल्ली सरकार के सर्विसेज विभाग के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने सेवा सचिव बदलने का आदेश जारी किया है। सर्विसेज सचिव पद पर नियुक्त आशीष मोरे को हटा दिया गया है और नए सचिव के तौर पर अनिल कुमार सिंह को नियुक्त किया गया। अनिल 1995 बैच के आईएएस अधिकारी हैं।