हास्य-व्यंग्य की यथार्थपरक शैली में नाटक प्रेम पतंगा का मंचन, शो रहा हाउसफुल
नए साल में शहर में पहले बड़े नाटक ‘प्रेम पतंगा’ का मंचन शहीद भवन में किया गया। विहान ड्रामा वर्क्स की इस प्रस्तुति में हिंदी के जाने-माने लेखक व फिल्मकार विमलचंद्र पांडे की लिखी कहानी को प्रस्तुत किया गया। हाल में इस नाटक का मंचन टीम ने ओडिशा और राजस्थान में भी किया और भोपाल में इसका 15 वां शो हुआ। नाटक में बताया गया कि प्रेम होना बहुत ही सहज है इतना कि उसके आगे किसी का कोई बस नहीं चलता, लेकिन प्रेम का प्रकटीकरण बहुत ही मुश्किल होता है। उस द्वंद्व में आपके व्यक्तित्व के साथ सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियां भी परोक्ष रूप से भागीदार बनती जाती हैं, यही इस नाटक का मूल कथा सूत्र है। नाटक में कलाकारों ने अपने अभिनय से कहीं दर्शकों को भावुक किया तो कहीं हंसाया। इस नाटक में टिकट राशि 50 रुपए रखी गई और शो हाउसफुल रहा। नाटक को देखने बच्चे, युवा और बुजुर्गों सहित साहित्यिक बिरादरी भी मौजूद रही।
बनारस की कजरी की शामिल
नाट्य संगीत में बनारस की एक कजरी, मिजार्पुर कैले गुलजार हो, कचौड़ी गली सून कैले बलमू...का प्रयोग किया गया। नाटक में गीत व संगीत हेमंत देवलेकर का रहा। संगीत से नाटक में विशेष प्रभाव पैदा हुआ।
नौकरी और प्रेम का संघर्ष
वेदिका के प्रेम में डूबे मुरारी के आत्म संघर्ष में मित्र ही उसका सहारा बनते हैं। वे उसे उसके व्यक्तित्व के कमजोर पहलू भी दिखाते हैं और वेदिका के समक्ष अपने दिल की बात कहने की हिम्मत भी देते हैं। पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे युवाओं की जिÞंदगी के संघर्ष दो स्तरों पर चल रहे हैं एक तो प्रेम प्रकरण, दूसरा शिक्षा सत्र पूरा होते ही अच्छी नौकरी की चिंता। उन्हें अहसास होता है कि बिना जैक के अच्छी नौकरी मिलना मुश्किल है।
कॉस्ट्यूम में 80 के दशक का रेट्रो टच
किरदारों द्वारा पहने गए कॉस्ट्यूम में नाटक की कहानी के अनुरूप रेट्रो टच देखा गया, जिससे नाटक 80-90 के दशक का प्रभाव देता दिखा। साथ ही प्रेम कहानी के हिसाब से खिले हुए रंगों का प्रयोग किया गया। कॉस्ट्यूम डिजाइन श्वेता केतकर की रही।
हर नाटक की निर्माण प्रक्रिया में कई चुनौतियां और जोखिम स्वत: उभरकर आते हैं लेकिन उस निरंतर की प्रक्रिया में रस भी आने लगता है। नई-नई कल्पनाओं और विचारों का स्फुरण निर्देशन का आनंद बन जाता है। युवा कहानीकार विमल चंद्र पांडे की लिखी मूल कहानी 'जैक, जैक, जैक... रुदाद-ए- नीरस प्रेम कहानी' को पढ़ते हुये कुछ दृश्य तो स्वत: ही दिखने लगे। इंप्रोवाइजेशन के दौरान इसके शिल्प और शैली का अनुभव होता गया। कहानी और रंग अभ्यास को देखते हुए हास्य-व्यंग्य की यथार्थपरक शैली बनती गई। इस तरह प्रेम और बेरोजगारी इन दोनों गंभीर समस्याओं को हास्य के परिवेश में प्रस्तुत किया गया। सौरभ अनंत, नाट्य निर्देशक