बहके रागों की गुनगुनी धूप में महके सुर साज
ग्वालियर। तानसेन समारोह के दूसरे दिन सुर साज के रंग खूब खिले। दूसरे दिन की पहली सभा में प्रात:कालीन राग भैरव तोड़ी से लेकर शुद्ध सारंग जैसे रागों की प्रस्तुति ने एक अलग ही असर छोड़ा। सभा की शुरुआत राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के समवेत ध्रुपद गायन से हुई। विद्यार्थियों ने चौताल ने निबद्ध राग भैरव की बंदिश महादेव महाकाल को बड़े ही सलीके से गाया। खास बात ये रही कि विद्यार्थियों ने ध्रुपद के चारों पट स्थाई, अंतरा आभोग और संचारी की प्रस्तुति दी। प्रस्तुति में पखावज पर जयवंत गायकवाड़ और सारंगी पर अब्दुल हमीद ने साथ दिया।
निर्देशन प्रोफेसर पारुल दीक्षित उपाध्याय का रहा। अगली प्रस्तुति भी ध्रुपद की रही।दिल्ली से पधारे सुमित आनंद में राग तोड़ी में अपना गायन पेश किया। आलाप, आलाप और द्रुत लय आलाप से शुरू करके उन्होंने राग के स्वरूप को निखारने की कोशिश की। इसके बाद चौताल की बंदिश मेरे अलहनाम को बड़े सलीके से विविध लयकारियों के साथ पेश किया।
गायन का समापन उन्होंने धमार की बंदिश ऐरी आली कवन जतन से किया। उनके साथ पखावज पर जयवंत गायकवाड़ ने संगत की। सभा की तीसरी प्रस्तुति में मुंबई से आए युवा तबला वादक ईशान घोष का चमत्कारी तबला वादन हुआ। प्रख्यात तबला वादक नयन घोष के सुपुत्र इशान को तबला विरासत में मिला है। उन्होंने तीन ताल में अपना वादन पेश किया। पेशकर से शुरू करके उन्होंने कुछ खास कायदे, परनें, तिहाइयां टुकड़े और रेले की प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में हारमोनियम पर दीपक खसरावल और सारंगी पर आबिद हुसैन ने साथ दिया। सभा की चौथी प्रस्तुति में बनारस से आईं सुश्री मधुमिता भट्टाचार्य का सरस और मधुर खयाल गायन हुआ।
उन्होंने राग शुद्ध सारंग में परंपरागत बंदिशों की प्रस्तुति दी। एकताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे ऐ बनाबन आया जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे अब मोरी बात मान लें। दोनों ही बंदिशों को मधुमिता जी ने पूरे मनोयोग से गाया। उन्होंने बड़े सधे हुए अंदाज में राग का विस्तार किया ऐसे कि एक-एक सुर खिल उठा। फिर तानों की प्रस्तुति भी ठीक रही। गायन का समापन उन्होंने बनारसी अंग का दादरा पेश किया। मिस्र भैरवी में रचना के बोल थे, नैन की मत मारो तलवारिया। इसे मधुमिता ने बड़े ही रंजक अंदाज में पेश किया। आपके साथ तबले पर शशांक मिश्रा, हारमोनियम पर जितेंद्र शर्मा, एवं सारंगी पर शिराज हुसैन ने मिठास भरी संगत का प्रदर्शन किया। सभा का समापन फारुख लतीफ खां एवं सरवर हुसैन के सारंगी वादन से हुआ। दोनों ही प्रख्यात सारंगी वादक उस्ताद अब्दुल लतीफ खां की परंपरा से आते हैं। फारूख इन दिनों मुंबई और सरवर कोलकाता में है। दोनों मंझे हुए कलाकार हैं।