मैक्सिको की नथाली की बांसुरी व राग जौनपुरी के स्वरों ने मोहा रसिकों का मन

मैक्सिको की नथाली की बांसुरी व राग जौनपुरी के स्वरों ने मोहा रसिकों का मन

ग्वालियर। तानसेन संगीत समारोह के तीसरे दिन विश्व संगीत के सुर महके, बांसुरी वादन के रूप में मैक्सिको की नथाली रामिरेज के बांसुरी वादन ने रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। नथाली ने विश्व संगीत की प्रस्तुति दी और रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। ग्वालियर की डा. पारुल दीक्षित उपाध्याय ने पंडित छन्नूलाल मिश्रा और पंडित राजन-साजन मिश्रा से संगीत की बारीकियां सीखकर राग जौनपुरी से सुबह की सभा सुरीली रही। सभा की शुरूआत भारतीय संगीत महाविद्यालय के विद्यार्थियों के ध्रुपद गायन से हुई। राग देशकार में चौताल की बंदिश ही प्रथम नाद सरस्वती को विद्यार्थियों ने बड़े सलीके से गाया। पखावज संजय आफले ने की। संगीत संयोजन संजय देवले का रहा।

सुबह की पहली प्रस्तुति में मैक्सिको की नथाली रामिरेज का बांसुरी वादन हुआ। उन्होंने अपने वादन में कोलंबिया, मैक्सिको और ब्राजील के पारंपरिक संगीत की धुनें वेस्टर्न तालों सांबा, डानसेन, कुंबिया सोन और मोंटुनो पर पेश की। पं. छन्नूलाल मिश्रा एवं राजन-साजन मिश्रा के सानिध्य में ग्वालियर की युवा गायिका डॉ पारुल दीक्षित उपाध्याय ने राग जौनपुरी से सुबह की सभा को मोहक बना दिया। इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश की।

इकताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे - बजे झननन जबकि तीनताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे - प्यारे कन्हाई न मारो कंकरिया, इन दोनों ही बंदिशों को पारुल ने बड़े ही सलीके से पेश किया। तबले पर विकास विपट एवं हारमोनियम पर विवेक जैन ने संगत की। इसी सभा में पुणे से तशरीफ लाए चिंतन उपाध्याय का ध्रुपद गायन हुआ। उन्होंने राग वृंदावनी सारंग में अपना गायन प्रस्तुत किया।

आलाप, जोड़ झाला से शुरू करके उन्होंने चौताल में तानसेन रचित ध्रुपद - तुम रब तुम साहिब को गाया। विविध लयकारियों के साथ सजाते हुए उन्होंने ध्रुपद गायकी के विविध आयामों से रसिकों को रूबरू कराया। आपके साथ पखावज पर पंडित संजयपंत आगले ने संगत की। बेंगलुरु से आईं सुश्री अनुपमा भागवत ने मीठा सितार वादन पेश किया। सभा का समापन बेंगलुर से आईं विदुषी पदमिनी राव के खयाल गायन से हुआ। उन्होंने राग गवाती से गायन का आगाज किया। इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश की।

एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे -तुमरे गुण गांऊ जबकि एक ताल में ही द्रुत बंदिश के बोल देह प्यारे मोर मंदिर आए। इसी राग में आपने तीन ताल में तराना पेश किया। आपने कर्नाटक शैली के राग हेमवती में भी एक बंदिश पेश की। गायन का समापन आपने भैरवी से किया। आपके साथ तबले पर मनोज पाटीदार और हारमोनियम पर दीपक खसरावल ने संगत की ।

हिमांगी का ख्याल गायन , शंकर गंधर्व के छात्रों का धु्रपद

समारोह की सायंकालीन सभा का शुभारंभ शंकर गांधर्व संगीत महाविद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों के ध्रुपद गायन से हुआ। चौताल में निबद्ध राग शुद्ध कल्याण की बंदिश रत्न  सिंहसन पर आसन को सभी ने समवेत स्वरों में बड़े ही मनोयोग से गाया। पखावज पर थे मुन्नालाल भट्ट। जबकि हारमोनियम पर थे टिकेंद्रनाथ चतुर्वेदी गीत संयोजन अनंत महाजनी का था। इसके बाद पहली प्रस्तुति में हैदराबाद की सुश्री हिमांगी नेने का सुमधुर खयाल गायन हुआ। उन्होंने राग भूपाली में अपने गायन की प्रस्तुति दी। इस राग में उन्होंने दो रचनाएं ( बंदिशें ) पेश की। तीन ताल में विलंबित बंदिश के बोल थे - ऐ री आज भईलवा जबकि तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे जब से तुम संग लागली ।