जिन निर्दलियों को पार्टियों ने टिकट दिया, चौंका सकते हैं उनके चुनाव परिणाम
भोपाल। जैसे-जैसे मतगणना का समय नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे प्रत्याशियों की धड़कनें तेज हो रही हैं। वे जीत-हार के गणित को लेकर भी फीडबैक ले रहे हैं। ऐसे प्रत्याशी जो पिछले चुनाव में निर्दलीय के तौर पर बेहतरीन प्रदर्शन कर चुके हैं, उनमें कई को भाजपा-कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है। इन प्रत्याशियों के सामने दलों से जीतना बड़ा चैलेंज है। बड़ा सवाल है कि क्या निर्दलीय रहते उन्होंने जो प्रदर्शन किया उससे बेहतर कर सकेंगे? या उनके परिणाम चौंकाएंगे।
विश्वामित्र पाठक विधानसभा: सिहावल (सीधी)
विंध्य की इस सीट से भाजपा ने विश्वामित्र पाठक पर अपना भरोसा जताया है। उनके सामने कांग्रेस के सीडब्ल्यूसी मेंबर कमलेश्वर पटेल मैदान में हैं। पाठक पिछले चुनाव में निर्दलीय थे और 27,121 वोट ले पाए थे। भाजपा के शिव बहादुर सिंह चंदेल 31,506 वोटों से हारे थे। चुनाव में कांग्रेस के कमलेश्वर कुमारे ने जीत दर्ज की थी। उन्हें 63918 वोट मिले थे।
विशाल रावत, विधानसभा: जोबट (आलीराजपुर)
निमाड़ की इस सीट विशाल रावत भाजपा के प्रत्याशी हैं। 2018 में रावत निर्दलीय लड़े थे और 31,229 वोट ले गए थे। वे कांग्रेस के बागी थे। यहां से कांग्रेस की कलावती भूरिया 2,056 वोटों से चुनाव जीती थीं। माधो सिंह डाबर भाजपा प्रत्याशी थे। विधायक कलावती के निधन के बाद हुए उपचुनाव में विशाल की मां सुलोचना भाजपा से जीतीं। अब विशाल यहां से भाजपा के प्रत्याशी हैं।
डॉक्टर रश्मि सिंह विधानसभा: नागौद (सतना)
विंध्य की इस सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ीं डॉ. रश्मि सिंह अब कांग्रेस प्रत्याशी हैं। बीते चुनाव में डॉ. रश्मि सिंह को 25,700 वोट मिले थे। यहां कांग्रेस के प्रत्याशी रहे यादवेंद्र सिंह को 53403 वोट मिले थे। अब यादवेंद्र बसपा के उम्मीदवार हैं। भाजपा से इस बार फिर विधायक नागेंद्र सिंह ही उम्मीदवार हैं। 2018 में नाग्रेंद्र सिंह जीते थे, उन्हें 54637 वोट मिले थे।
सुरेंद्र सिंह ठाकुर (शेरा) विधानसभा: बुरहानपुर
इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह शेरा मैदान में हैं। 2018 के चुनाव में वे 98,561 वोट हासिल करने वाले निर्दलीय विजेता थे। इस दौरान वे भाजपा की अर्चना चिटनीस से 5,120 वोट से ही जीते थे। कांग्रेस प्रत्याशी को 15,379 वोट मिले थे। इस बार शेरा कांग्रेस और अर्चना भाजपा उम्मीदवार हैं। भाजपा के बागी हर्ष नंदकुमार सिंह चौहान निर्दलीय मैदान में हैं।
पार्टी से प्रत्याशी बनने के नफा और नुकसान दोनों हैं
जब कोई व्यक्ति निर्दलीय चुनाव लड़ता है तो उसे बड़ा जनसमर्थन मिलता है तो इसके कई मायने हैं। एक तो उसकी व्यक्गित छवि, दूसरा वोटर राजनीतिक दलों से नाराज हो सकते हैं। पार्टियों से चुनाव लड़ने पर प्रत्याशियों को फायदा और नुकसान दोनों ही हैं। -दिनेश गुप्ता,वरिष्ठ पत्रकार