हरिकथा, मिलाद और चादरपोशी के साथ हुई तानसेन समारोह की पारंपरिक शुरूआत
ग्वालियर। भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रतिष्ठापूर्ण तानसेन समारोह की रविवार सुबह पारंपरिक ढंग से शुरूआत हुई। यहां हजीरा स्थित तानसेन समाधि स्थल पर शहनाई वादन, हरिकथा, मिलाद, चादरपोशी और कव्वाली गायन हुआ। तानसेन अलंकरण मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सोमवार को ख्यातिप्राप्त गायक गणपति भट्ट को अलंकृत करेंगे। सुर सम्राट तानसेन की स्मृति में आयोजित होने वाले तानसेन समारोह का इस साल 99वां वर्ष है। तानसेन समारोह का औपचारिक शुभारंभ रविवार सायंकाल हजीरा स्थित तानसेन समाधि परिसर में ऐतिहासिक मानसिंह तोमर महल की थीम पर बने भव्य एवं आकर्षक मंच पर हुआ। इसी मंच पर बैठकर देश और दुनिया के ब्रह्मनाद के शीर्षस्थ साधक सुर सम्राट तानसेन को स्वरांजलि अर्पित करेंगे। रविवार की प्रात: बेला में तानसेन समाधि स्थल पर परंपरागत ढंग से उस्ताद मजीद खां एवं साथियों ने रागमय शहनाई वादन किया।
इसके बाद ढोलीबुआ महाराज नाथपंथी संत सच्चिदानंद नाथ ने संगीतमय आध्यात्मिक प्रवचन देते हुए ईश्वर और मनुष्य के रिश्तों को उजागर किया। उनके प्रवचन का सार था कि परहित से बढ़कर कोई धर्म नहीं। अल्लाह और ईश्वर, राम और रहीम, कृष्ण और करीम, खुदा और हरिकथा के बाद मुस्लिम समुदाय से मौलाना इकबाल लश्कर कादिरी ने मिलाद शरीफ की तकरीर सुनाई। उन्होंने कहा सबसे बड़ी भक्ति मोहब्बत है। उनके द्वारा प्रस्तुत कलाम के बोल थे तू ही जलवानुमा है मैं नहीं हूं। अंत में हजरत मोहम्मद गौस व तानसेन की मजार पर राज्य सरकार की ओर से सैय्यद जियाउल हसन सज्जादा नसीन द्वारा परंपरागत ढंग से चादरपोशी की गई।