लिमिटेड इंटरनेट प्लान लें, गैर जरूरी एप्लीकेशन को अनइंस्टॉल करें
अधिकांश लोग सैकड़ों बार बिना किसी कारण के अपना मोबाइल फोन चेक करते हैं क्योंकि यह उनकी आदत बन चुकी है। सोने से पहले एक बार नोटिफिकेशंस देखने के लिए फोन उठाया तो कब रील्स स्क्रॉल करते-करते 2 से 3 घंटे बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता है। नोमोफोबिया के शिकार व्यक्ति का हाल कुछ ऐसा ही होता है। फोन के बिना उन्हें बेचैनी और घबराहट होने लगती है। यह एक साइकोलॉजिकल कंडीशन है। इस फोबिया के शिकार लोग जब अपने स्मार्टफोन या डिजिटल डिवाइस से दूर होते हैं या कम बैटरी या इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी होती है तो उन्हें घबराहट, चिंता और भय होने लगता है। नेशनल नो मोबाइल एट होम डे का मकसद लोगों को जागरूक करना है कि वे कुछ घंटों के लिए मोबाइल से दूर रहे।
रोशनी से उड़ती है नींद
स्लीप फाउंडेशन की स्टडी बताती है डिजिटल डिवाइस की ब्लू लाइट में हमारा शरीर मेलाटॉनिन रिलीज नहीं कर पाता, जिसकी मौजूदगी हमें नींद का अहसास कराती है। रोशनी हमारे शरीर में मेलाटॉनिन का प्रोडक्शन रोक देती है या कम कर देती है।
ऐप के जरिए खुद करें अपने समय की निगरानी
ऐसे कई ऐप हैं, जो कि फोन पर बिताए गए समय की निगरानी करते हैं। खुद से सवाल पूछे कि बार-बार फोन चेक करने से क्या मिल रहा है तो खुद व खुद दूरी बना लेंगे क्योंकि असल में सिर्फ आदत के चलते बार-बार फोन उठाते हैं, जरूरत के चलते नहीं।
नो फोन एट होम के लिए एक्सपर्ट एडवाइस
- मोबाइल को जब लगे कि काम नहीं है या कोई महत्वपूर्ण कॉल नहीं आने वाली तब एयरप्लेन मोड पर रखें।
- जिस समय आराम करते हो या बच्चों के साथ समय बिताते हो, उस समय मोबाइल खुद से दूर कर दें।
- खाना खाते समय मोबाइल दूर रखें, ताकि खाने का स्वाद ले सकें।
- बार-बार नोटिफिकेशन पॉप अप्स ध्यान भटकाते हैं, इसलिए उन्हें बंद कर दें।
- अपने फोन नोटिफिकेशन को बंद कर दें।
- गैर जरूरी एप्लीकेशन को म्यूट या अनइंस्टॉल कर दें।
- हमेशा लिमिटेड इंटरनेट प्लान ही लें ताकि ज्यादा इंटरनेट न चला सकें।
नींद न होने से हार्ट अटैक और स्ट्रोक भी
नींद नहीं पूरी होने से शरीर में मौजूद टॉक्सिन्स बाहर नहीं निकल पाते हैं। इससे हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है। जरूरी है कि हम डीप स्लीप लें। नींद सही न मिलने पर स्ट्रोक भी आते हैं। डॉ. नीरेंद्र राय, न्यूरोलाजिस्ट