मिष्ठान क्लस्टर: देश में पहचान बनाने तरस रही जबलपुर की मिठाईयां
जबलपुर। शहर व आसपास की कुछ मिठाइयां ऐसी हैं जिनकी खपत विदेशों तक है मगर ये आज भी अपनी पहचान बनाने के लिए तरस रही हैं। करीब 14 साल पहले शहर में मिष्ठान क्लस्टर का प्रस्ताव आया था जिसमें शासन ने जमीन दी बजट भी स्वीकृत किया मगर किसी ने किसी कमी के चलते यह आज तक पूरा नहीं हो पाया है हालाकि इस साल के अंत तक यह प्रोजेक्ट आकार लेने लगेगा ऐसी स्थिति बन चुकी है। यहां की खोवा की जलेबी तो विदेश में रहने वाला हर जबलपुर वासी अपने साथ जरूर ले जाता है। इसी तरह कटंगी या शहर में राजा के रसगुल्ले ऐसे मिष्ठान हैं जिन्हें कम से कम राष्ट्रीय पहचान मिलना चाहिए।
शहर के मिष्ठान क्लस्टर के लिए केन्द्र सरकार की अनुमति और उद्योग विभाग द्वारा 20 एकड़ जमीन आवंटन के बाद भी नक्शा स्वीकृति के लिए 3 विभागों के बीच फाइल घूमी। 18 करोड़ के इस प्रोजेक्ट के पूर्ण होने पर पंजीकृत 200 हितग्राहियों को जगह मिलना है। इस प्रोजेक्ट के पूर्ण होने से शहर की पारंपरिक मिठाइयों को राष्ट्रीय स्तर तक पहचान मिल सकती है। इसमें जो जगह स्वीकृत की गई है उसमें भी विवाद सामने आए जिन्हें सुलझा लिया गया है।
14 साल से जारी है कवायद
वर्ष 2010 से शहर में मिष्ठान क्लस्टर के लिए कवायद जारी है,लंबी मेहनत के बाद इस प्रोजेक्ट को केन्द्र सरकार ने अनुमति दे दी लेकिन उपयुक्त व वांछित जमीन आवंटन और नक्शा स्वीकृति को लेकर अड़चनें पैदा की गईं। जिन्हें अब पूरा कर लिया गया है। साल भर पहले के न्द्र सरकार ने प्रदेश के एमएसएमई विभाग को इस दिशा में कार्रवाई करने के लिए कहा गया जिला उद्योग विभाग ने जमीन आवंटन की प्रक्रिया की।
3 से सवा 2 एकड़ हुई जमीन
मिष्ठान एवं नमकीन क्लस्टर के लिए 3 एकड़ भूमि की स्वीकृति मिली थी,लेकिन अब यह करीब सवा दो एकड़ हो गई है,क्योंकि रिछाई की जिस 20 एकड़ से ज्यादा जिस औद्योगिक भूमि के एक हिस्से में इसकी स्थापना होना है वहां एक अन्य योजना को शुरू किया जाना है।
ये है प्रोजेक्ट की विशेषता
मिष्ठान एवं नमकीन क्लस्टर में खोवा,छेना,पनीर, नमकीन में इस्तेमाल होने वाले मसाले,बेसन आदि तैयार होंगे। यहां से लैब में प्रामाणिकता के बाद ही माल बाहर पहुंचेगा। यह माल क्लस्टर में पंजीकृत 200 सदस्यों को मिलेगा। ये अपनी आवश्यकता के अनुरूप इन चीजों को तैयार कराएंगे,फिर इससे मिठाइयां बनेंगी। यही नहीं पैकेजिंग भी होगी ताकि दूसरी बड़ी कंपनियों के माल को यहां के व्यापारी टक्कर दे सकें।
ये आए अवरोध
18 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट की जमीन का नक्शा पास होने में दिक्कत आईं। रिछाई में जहां जमीन मिली थी वहां फिर से नक्शा व ले आउट प्लान बना। यह अधिकार ट्रॉयफेक को है,लेकिन अब यह अस्तित्व में नहीं है। इसलिए वहां से ज्वाइंट डायरेक्टर टीएंडसीपी को पत्र भेजा गया। यहां से कह दिया गया कि एमएसएमई विभाग एमपीआईडीसी से यह काम करवा सकता है। उद्योग विभाग इसकी एलओवाय यानि जमीन आवंटन की प्रक्रिया शर्तों के अधीन कर चुका है। अब यहां पर निर्माण कार्य प्रारंभ होंगे।