1960 के दशक में स्वामीनाथन ने रोक दिया था अकाल का खतरा

1960 के दशक में स्वामीनाथन ने रोक दिया था अकाल का खतरा

चेन्नई। खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के कट्टर पैरोकार एमएस स्वामीनाथन के पथप्रवर्तक कार्य ने 1960 के दशक के दौरान अकाल के खतरे को रोक दिया था। जब भारत अकाल की ओर बढ़ रहा, तब स्वामीनाथन गेहूं और चावल की अच्छी उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने के लिए विश्व खाद्य पुरस्कार (1987) पाने वाले पहले व्यक्ति बने। स्वामीनाथन के प्रयासों से गेहूं का उत्पादन दोगुना हो गया था, जिससे देश आत्मनिर्भर बना और लाखों लोग भुखमरी से बच गए। उन्हें दुनियाभर के विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की 84 मानद डिग्री प्राप्त हुई थीं। वह रॉयल सोसायटी आॅफ लंदन और यूएस नेशनल एकेडमी आॅफ साइंसेज समेत कई प्रमुख वैज्ञानिक एकेडमी के फेलो रहे। वह 2007 से 2013 तक राज्यसभा सदस्य भी रहे। वह कृषि मंत्रालय में प्रधान सचिव, योजना आयोग में कार्यवाहक उपाध्यक्ष और बाद में सदस्य और फिलीपीन के अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में महानिदेशक भी रहे।

बंगाल के अकाल को देख कृषि की पढ़ाई की

1943 में बंगाल के भीषण अकाल ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। इसके बाद स्वामीनाथन ने कृषि की पढ़ाई की। 1944 में मद्रास एग्रीकल्चरल कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर आॅफ साइंस की डिग्री हासिल की। 1947 में आनुवंशिकी और पादप प्रजनन की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली में आईएआरआई आ गए। उन्होंने 1949 में साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की।

कृषि के विकास के लिए छोड़ी कढर

परिवार का दबाव पड़ा कि उन्हें सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए। आखिरकार वह सिविल सेवाओं की परीक्षाओं में शामिल हुए और भारतीय पुलिस सेवा में उनका चयन हुआ। उसी समय उनके लिए नीदरलैंड में आनुवंशिकी में यूनेस्को फेलोशिप के रूप में कृषि क्षेत्र में एक मौका मिला। स्वामीनाथन ने पुलिस सेवा को छोड़कर नीदरलैंड जाना सही समझा। 1954 में वह भारत आ गए और यहीं कृषि के लिए काम करना शुरू कर दिया।

   नवाचार के पॉवरहाउस थे देश के इतिहास में एक बहुत ही नाजुक अवधि में, कृषि में उनके योगदान ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया और राष्ट्र के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की। वे नवाचार के पावरहाउस और कई लोगों के लिए एक कुशल संरक्षक भी थे। -नरेंद्र मोदी, पीएम