सर्वेलांस और कचरा मॉनीटरिंग सिस्टम: किसकी जेब भरने लाया गया प्रोजेक्ट
जबलपुर। भीड़-भाड़ वाले इलाके जैसे रेलवे स्टेशन,बस स्टैंड आदि में लोगों को चिन्हित करना,सर्वेलांस कैमरों से मॉनीटरिंग सहित शहर में मुख्य या उप मार्गों पर कहीं भी कचरा होने की जानकारी लेने वाले प्रोजेक्ट 7 साल बाद भी फाइलों में दफन हैं। स्मार्ट सिटी इस समय अपने हिसाब से उन प्रोजेक्टों पर ही ध्यान दे रही है जो बेहद जरूरी हैं। मतलब सीधा है कि अपने द्वारा ही किए गए दावों पर वह ध्यान नहीं दे रही है। आखिर इतनी भारी -भरकम राशि खर्च करने के बाद भी जनता को इसका एक पैसे का फायदा क्यों नहीं मिल रहा है। किसकी जेब भरने इस तरह के प्रोजेक्ट लाए जाते हैं,इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है।
गौरतलब है कि स्मार्ट सिटी ने कंट्रोल एंड कमांड सेंटर के निर्माण व इसे संसाधन युक्त करने पर 73 करोड़ रुपए से अधिक की राशि व्यय की है। वर्तमान में इसका उपयोग केवल चौराहों पर वाहनों के चालान काटने या कोविड कॉल में कोविड कंट्रोल रूम के रूप में किया गया है। जो सुविधाएं और नवाचार शहर के लिए होने थे वे फाइलों में कैद हैं। इनमें से कचरा मॉनीटरिंग सिस्टम के लिए चिप लगाने वाला प्रोजेक्ट तो 5 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद बंद ही कर दिया गया है। शहर के नागरिकों को सुचारू यातायात मुहैया करवाने तथा कचरा संग्रहण कार्य की मॉनीटरिंग का काम महत्वपूर्ण है,मगर इन दोनों प्रोजेक्ट में भारी- भरकम राशि खर्च किए जाने के बाद भी वांछित रिजल्ट न मिलने पर स्मार्ट सिटी प्रबंधन के उच्चाधिकारियों का मौन रहस्यात्मक प्रतीत हो रहा है।
अपराध घटित होने पर पुलिस के कैमरे भी काम नहीं आए
शहर में जो भी गंभीर अपराध हुए हैं इनमें पुलिस के द्वारा लगवाए गए 650 कैमरों में से एक भी काम नहीं आया। हर घटना में प्राईवेट सीसी कैमरों की फुटेज ही तलाशी जाती है। यदि कंट्रोल कमांड सेंटर अपने प्रोजेक्ट सर्वेलांस के कैमरे लगवाती तो इसमें भी मदद मिल सकती थी।
सर्वेलांस कैमरे सहित कचरा कहां पड़ा है जैसे प्रोजेक्टपर काम होना था। वर्तमान में हमारे द्वारा 12 चौराहों और 5 एंट्री गेट में कैमरों से मॉनीटरिंग होती है मगर यह भी केवल वाहन की पीछे से नंबर प्लेट ही कैप्चर करती है। रवि राव, प्रशासनिक अधिकारी, स्मार्ट सिटी