सुप्रीम कोर्ट की समिति अधिक उपयुक्त, जेपीसी से भी अधिक प्रभावी होगी
मुंबई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार ने शनिवार को कहा कि वह अडाणी समूह के खिलाफ आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच के पूरी तरह से खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट की एक समिति अधिक उपयुक्त और प्रभावी होगी। पवार ने पत्रकारों से कहा कि अगर जेपीसी में 21 सदस्य हैं, तो संसद में संख्या बल के कारण 15 सत्ता पक्ष से और छह विपक्षी दलों से होंगे, जो समिति पर संदेह पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने एक विशिष्ट समय अवधि में रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश के साथ सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने का फैसला किया। हालांकि पवार के इस बयान से शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के संजय राउत ने कहा कि पवार ने अपनी राय जाहिर की है। विपक्ष अपनी मांग पर अडिग है। इधर बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट कर पूछा है कि कल तक पूरी कांग्रेस गुलाम नबी आजाद और सिंधिया को गाली दे रही थी। अब जब शरद पवार ने जेपीसी के मुद्दे पर कांग्रेस से किनारा किया है और कांग्रेस का मजाक उड़ाया है, तो क्या कांग्रेस के प्रवक्ता उन्हें भी परेशान करेंगे या चुप रहेंगे? क्या मुद्दों पर राहुल गांधी का दृढ़ विश्वास कमजोर है?
राहुल ने कहा-सच्चाई छुपाते हैं, इसलिए रोज भटकाते ह
इधर, कांग्रेस ने पवार के बयान की पृष्ठभूमि में कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति का जांच का दायरा बहुत सीमित है तथा संयुक्त संसदीय समिति से ही सच सामने आ सकता है। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने दावा किया कि सच्चाई छिपाई जा रही है, इसलिए रोज ध्यान भटकाया जा रहा है। उन्होंने ट्वीट किया,‘ सच्चाई छुपाते हैं, इसलिए रोज भटकाते हैं! सवाल वही है - अडाणी की कंपनियों में 20,000 करोड़ की बेनामी रकम किसकी है?
शरद पवार के रुख से विपक्षी एकता पर असर नहीं : राउत
शिवसेना (यूबीटी) के संजय राउत ने कहा कि विपक्ष जेपीसी जांच की मांग पर अडिग है। सबकी राय भिन्न हो सकती है, लेकिन उससे विपक्षी एकता में दरार नहीं आयेगी।
अडाणी मामले में यह बयान दिया था राकांपा प्रमुख ने
एक चैनल पर पवार कहा था जो मुद्दे रखे गए, किसने ये मुद्दे रखे, जिन लोगों ने बयान दिए उनके बारे में हमने कभी नहीं सुना कि उनकी क्या पृष्ठभूमि है। जब वे ऐसे मुद्दे उठाते हैं जिससे देश में हंगामा होता है, तो इसकी कीमत देश की अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़ती है।