स्ट्रोक बुजुर्गों को नहीं, नौजवानों को बना रहा अपना शिकार
नई दिल्ली। दिल्ली एम्स के मुताबिक स्ट्रोक, साइलेंट स्ट्रोक, हार्ट अटैक जैसी बीमारी अब बुजुर्गों से ज्यादा नौजवानों को परेशान कर रही हैं। एम्स के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट में एडमिट 100 मरीजों में से 20 मरीज को दो बार स्ट्रोक हो चुका है। पिछले साल कम उम्र के 6 मरीजों को स्ट्रोक के कारण एडमिट करवाया गया है। डॉक्टरों के मुताबिक इन मरीजों के स्ट्रोक के पीछे का कारण हाई बीपी की परेशानी है, जो अक्सर 21 से 45 की उम्र वाले लोगों में गंभीर रूप से देखने को मिलती है। एक साल में 300 लोगों में से 77 मरीज स्ट्रोक की वजह से एडमिट होते हैं। एम्स के एडिशनल प्रोफेसर अवध किशोर पंडित के मुताबिक एम्स के डेटा के हिसाब से हाई बीपी के कारण नौजवानों में स्ट्रोक का खतरा बढ़ा है। 5 साल पहले एम्स के रिसर्च के मुताबिक 260 मरीजों में से 65 प्रतिशत हाई बीपी के मरीज हैं।
इस कारण बढ़ता है खतरा : ब्लड वेसेल्स की रुकावट (इस्केमिक स्ट्रोक) और ब्लड वेसेल्स के टूटने (हेमोरेजिक स्ट्रोक) के कारण इमरजेंसी ब्रेन, रेटिना और रीढ़ की हड्डी में डिसआॅर्डर होती है। डायबिटीज, हाई बीपी, धूम्रपान, दिल की धड़कन में गड़बड़ी के कारण स्ट्रोक का खतरा 85 प्रतिशत बढ़ जाता है।
तनाव-डिप्रेशन से ब्रेन स्ट्रोक
दिल से जुड़ी बीमारी, डायबिटीज, लिपिड डिसआॅर्डर, मोटापा, धूम्रपान, के कारण स्ट्रोक के मामले बढ़ते हैं। कुछ और भी कारण है, जिससे स्ट्रोक होता है जैसे- तनाव, नशाखोरी, नींद की कमी और डिप्रेशन लगभग 40 से 50 प्रतिशत मामले। गर्दन में झटके, अचानक गर्दन का मुड़ना, जिम में गर्दन की वजह से भी स्ट्रोक आ सकता है।
दुनियाभर में 3 में से एक मरीज हाई बीपी से पीड़ित
एम्स द्वारा शेयर किए गए आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में 3 में से 1 मरीज हाई बीपी का है, जिसके कारण स्ट्रोक, हार्ट अटैक, हार्ट फेलियर, किडनी डैमेज होती है। हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों की संख्या 1980 और 2019 के बीच काफी ज्यादा बढ़ी है।