नाक से खून और उल्टी होने के बाद भी नहीं थमे सोनिका के पैर

नाक से खून और उल्टी होने के बाद भी नहीं थमे सोनिका के पैर

इंदौर। कहते हैं कि हौसले बुलंद हों और कुछ करने का जज्बा हो तो रास्तों में आने वाले कांटे भी मंजिल तक पहुंचने में रुकावट नहीं बनते। ऐसा ही कुछ जज्बा जिला देवास के एक छोटे से गांव नवादाखेड़ी से आने वाली किसान की बेटी सोनिका के अंदर देखने को मिला। सोनिका ने केवल 18 साल की उम्र में साउथ अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो पर भारत का तिरंगा लहराकर न केवल अपने परिवार को नाम रोशन किया, बल्कि देश को भी गर्वित किया। बता दें कि किलिमंजारो अफ्रीका महाद्वीप का सबसे ऊंचा और विश्व का सबसे ऊंचा एकल पर्वत है।

सोनिका के पिता श्याम जाट पेशे से किसान है। छोटे से गांव नवादाखेड़ी में सोनिका की प्रारंभिक पढ़ाई गांव से हुई है। वर्तमान में डीएवीवी इंदौर से बीएससी फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रही हैं। सोनिका ने बताया कि 14 मार्च की सुबह मोसी तंजानिया के मारंगो गैट से चढ़ाई शुरू की। सात दिनों की कठिन चढ़ाई सिर्फ पांच दिनों में पूरी की। जैसे-जैसे वह मंजिल की ओर बढ़ रही थीं... मुश्किलें भी उतनी ही अधिक आ रही थीं। 10 किलो के बैग को लेकर पहाड़ पर बैलेंस बनाकर चलना आसान नहीं था, क्योंकि वहां आॅक्सीजन की कमी थी। इसके साथ ही किलिमंजारो सूखा और चट्टानी पहाड़ है।

क्योंकि मुझे भारत का तिरंगा लहराना था

सोनिका ने बताया कि उस पहाड़ की ऊंचाई 19340 फीट है। यहां का तापमान मायनस 20 डिग्री से मायनस 25 डिग्री सेल्सियस था। हवा की गति 120 से 140 किमी प्रतिघंटा थी। किसी भी माउंटेन को फतेह करना कोई छोटी बात नहीं होती है । सबसे पहले हम कैंप 1 से लेकर कैंप 3 के तक पहुंचना था। कैंप 3 को शाम को 4 बजे पहुंचे और मेरी तबीयत खराब होने लग गई । वहां पहुंचने के बाद मुझे माउंटेन सिकनेस होने लग गई, जबकि हमको रात को 11 बजे सबमिट के लिए निकलना था, फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी, क्योंकि मुझे अपने भारत का तिरंगा यहां लहराना था।

15 साल की उम्र से शुरू हुआ सफर

15 वर्ष की आयु में जब पहली बार सोनिका का चयन एनसीसी में ग्रुप लेवल पर पर्वतारोहण के लिए हुआ तो पिता ने उसे खेत में प्रैक्टिस करवाना शुरू कर दी। वे खेत में उसे भारी वजन के साथ चलाते और अन्य काम करवाते थे, ताकि पहाड़ पर चढ़ने के लिए वह मजबूत बन सके। सोनिका 2021 में एनसीसी से जुड़ीं और यहीं से उनका पर्वतारोहण का सफर शुरू हुआ। सोनिका के पिता ने कहा कि हम खेती-किसानी करते हैं और हमारी आय बहुत सीमित है। अभी हमने रिश्तेदारों और अन्य लोगों से मदद लेकर बेटी को देश का नाम रोशन करने के लिए पहुंचाया है।

गाइड बोला- अगर नहीं कर पा रही हो तो कोई बात नहीं

मेरे गाइड ने मुझे दवाई दी और मैं 15 मिनट सोने के बाद सबमिट के लिए रेडी होने लग गई । अब हमने सबमिट के लिए रात को चलना चालू किया, जिसमें मुझे नाक में से खून और उल्टी होने लगी व मेरे हाथ-पैर ठंडे होने लगे। फिर मेरे गाइड ने मुझे बोला कि सोनिका अगर आप नहीं कर पा रहे हो तो कोई बात नहीं, पर मैंने हार नहीं मानी। मेरा तो एक ही लक्ष्य था कि मेरे भारत का तिरंगा अफ्रीका महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी पर लहराना है। मैंने बोला -नहीं सर मैं पक्का करूंगी। मैं धीरे चल कर आऊंगी, पर करूंगी और मैंने चलना चालू किया । 6 बजकर 45 पर सबमिट किया।