नाले में तब्दील हो गई सोहागपुर की पौराणिक पलकमती नदी
सोहागपुर। नर्मदापुरम जिले के सोहागपुर कस्बे के मध्य से होकर गुजरने वाली प्रागैतिहासिक कालीन पलकमती नदी अब पूरी तरह सूख चुकी है। इसमें केवल गंदा और प्रदूषित पानी ही बहता है। कभी बारहमासी पलकमती का पानी स्थानीय लोग अपने घरों में पीने और अन्य कार्यों के लिए उपयोग करते थे। बताया जाता है कि विकिपीडिया में भी यह सबसे सुंदर नदी के रूप में उल्लेखित थी। लेकिन, लगातार रेत उत्खनन के चलते और कई गंदे नालों के मिलने से इसका पानी प्रदूषित हो गया है। सोहागपुर विधायक विजय पाल सिंह राजपूत ने पलकमती को साबरमती जैसा बनाने की घोषणा भी की थी, लेकिन स्थितियां जस की तस है।
पौराणिक कथाओं में उल्लेख
एक कथा के अनुसार, द्वापर युग में असुरराज बाणासुर की पुत्री ऊषा की पलकों से भगवान श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध के विरह में टपके दो आंसुओं से इस नदी का उद्गम हुआ, इसलिए इसे पलकमती नाम मिला। सतपुड़ा की तलहटी के घोघरा में इसका उद्गम है। घने जंगलों और पहाड़ों से सफर करते हुए कई गांवों और सोहागपुर के बीच से गुजरते हुए लगभग 80 किमी का सफर तय कर पामली क्षेत्र में पलकमती नदी नर्मदा में मिल जाती है। नगर के दीवान परिवार के हेमकुमार ने बताया कि डोलग्यारस पर भगवान की डोली को यहां जल विहार कराया जाता था। वहीं, भुजरिया पर्व पर पूजन एवं नवरात्रि में जवारों का विर्सजन पलकमती नदी के तीरे किया जाता था।
दाल पकाने के लिए मुफीद था
पलकमती का पानी होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से प्रथम सांसद सैयद अहमद मूसा के 90 वर्षीय भतीजे और पर्यावरणविद् सैयद इलियास साहब बताते हैं कि पहले क्षेत्र के लोग पलकमती का पानी घरों में अलग से बटले में रखते थे, क्योंकि यह पीने और खासतौर से दाल गलाने के लिए मुफीद था। इसे नर्मदा जल से भी हल्का माना जाता था।
नदी के उत्थान के लिए कर रहे हैं काम
एसडीएम अखिल राठौर ने बताया कि पलकमती के उत्थान व सौंदर्यीकरण के 5 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ है, जिससे इसके सौंदर्यीकरण और बैराज के निर्माण किया जाएगा। नगरपालिका के मुख्य कार्यपालन अधिकारी दीपक रानवे कहते हैं कि गंदे नालों को पलकमती में मिलने से रोकने के लिए काम किया जा रहा है।