सोशल मीडिया ने बढ़ाया स्टेज से पब्लिक को बांधे रखने का चैलेंज : उदय दाहिया
फेमस कॉमेडियन और द ग्रेट इंडियन लॉफ्टर चैलेंज टीवी शो के पहले एपिसोड के पहले कंटेस्टेंट उदय दाहिया ने स्टेज के साथ ही अब फिल्मों की ओर रुख किया है। वे इन दिनों ‘ड्रीम गर्ल’ फेम राज शांडिल्य की स्टोरी पर बन रही फिल्म ‘लव की अरेंज मैरिज’ की शूटिंग कर रहे हैं। शूटिंग के लिए राजधानी भोपाल पहुंचे उदय दाहिया पीपुल्स समाचार के न्यूज रूम भी पहुंचे और अखबार के प्रकाशन के बारे में जानकारी ली। इस मौके पर न्यूजरूम के साथियों ने उनसे बातचीत की। इस बातचीत में उदय ने अपने संघर्ष, वर्तमान चुनौतियां सफलता और विभिन्न मुद्दों पर बेबाक राय रखी।
प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश...
सवाल : लॉफ्टर चैंलेज के लिए अचानक मुंबई कैसे पहुंच गए?
जवाब : मैं वर्ष 2005 में मुंबई गया, लेकिन 1991 से मंच पर काम कर रहा हूं। लॉफ्टर चैलेंज वर्ष 2005 में आया। पहले सीजन में मैं, सुनील पाल, राजू श्रीवास्तव, अहसान कुरैशी, भगवंत मान, नवीन प्रभाकर और अन्य के साथ था। लॉफ्टर शो का फीवर वर्ष 2015 तक चला, फिर कॉमेडी सर्कस, कॉमेडी चैंपियन, एक्टिंग की पाठशाला, सेंटा सुपर स्टार शो आया। स्टेज शो मिलने लगे, कुछ लोग फिल्मों में भी गए। मैं बॉलीवुड की दो फिल्में कर चुका हूं। दो फिल्मों की शूट कर रहा हूं। हम टिके हैं तो यह हमारी प्रतिभा ही है। इस फील्ड में आप सिफारिश करके लाइन में तो घुस सकते हैं, लेकिन दौड़ने के लिए क्षमता होना जरूरी है।
सवाल : आप ओम पुरी की हूबहू आवाज निकालते हैं, जब वे आपसे मिले तो क्या रिएक्शन था?
जवाब : ओम पुरी साहब से जब मैं मिला तो उन्होंने कहा कि, अच्छा..तुम्हीं उदय हो जो मेरी आवाज निकालते हो, इंडस्ट्री के करीब 150 लोग मुझे कह चुके हैं एक लड़का है उदय, आपकी हूबहू आवाज निकालता है। ओम पुरी साहब के गुजरने के बाद दो फिल्मों में उनकी आवाज देने का का सौभाग्य मिला। एक फिल्म डेप्थ ऑफ डार्कनेस हॉलीवुड में रिलीज हो चुकी है, बॉलीवुड में आना बाकी है।
सवाल : क्या स्टेज पर परफॉर्मेंस अब और चुनौतीपूर्ण हो गई है?
जवाब : लाइव शो में परफॉर्मेंस करना चैलेंज हो गया है। आइटम की उम्र कम हो गई। सोशल मीडिया के कारण हमारे जोक्स और पंच इतनी तेजी से वायरल होते हैं कि एक शहर से दूसरे शहर में पहुंचो तो आपको कुछ नया ही सुनाना पड़ेगा। अगर नयापन नहीं होगा तो पब्लिक बोर हो जाएगी और पब्लिक को बांध कर रखना ही हमारी जिम्मेदारी है।
सवाल : क्या कलाकारों की बोलने की आजादी पर भी अंकुश महसूस करते हैं?
जवाब : बोलने की आजादी ठीक है लेकिन किसी एक आदमी के पीछे लगातार बोलना ठीक भी नहीं। हमारे फील्ड में कुछ लोग ऐसे आ गए हैं, जिन्होंने किसी पार्टी को, किसी व्यक्ति को टारगेट कर लिया। वो सिर्फ लाइक्स और व्यूज के लिए ऐसा करते हैं। सिस्टम के खिलाफ बोलें, लेकिन उसमें लॉजिक होना चाहिए और पब्लिक का फायदा होना चाहिए। पहले आलोचना होती थी, लेकिन अब लक्षित आलोचना होने लगी है, यह ठीक नहीं। आपका कंटेंट इतना शुद्ध होना चाहिए कि किसी की भावनाएं आहत नहीं हो। धर्म आस्था का विषय है, हंसी-मजाक का विषय नहीं है। कलाकार किसी धर्म का नहीं होता, हम कलाकारों का धर्म सबसे पहले लोगों का मनोरंजन करना है।
सवाल : सामाजिक विषयों पर बॉलीवुड के कलाकार आगे क्यों नहीं आते?
जवाब : मेरा मानना है कि हर कलाकार का अपना एक अलग विचार होता है। जब सेलिब्रिटी किसी समाजिक विषयों को उठाते हैं तो सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग शुरू हो जाती है। लोग उनके परिवार पर या व्यक्तिगत कमेंट करने लगते हैं। ऐसे माहौल के कारण कलाकार किसी भी मुद्दे पर सार्वजनिक टिप्पणी से बचते हैं और अपने काम पर फोकस करते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि हमारे कलाकार समाज के लिए अपने व्यक्तिगत स्तर पर बहुत कुछ करते हैं। कुछ लोगों के सोशल वर्क नजर आते हैं, कोई बिना नाम बताए मदद कर देता है।
सवाल : क्या मप्र को होने और अच्छी हिंदी भाषा आने का फायदा मिलता है?
जवाब : इंडस्ट्री में हिंदी बोलने वालों की हमेशा डिमांड बनी रहती है। अच्छी हिंदी का हमें लाभ मिलता है। जो लोग हिंदी स्टेट से हैं उनकी भाषा स्पष्ट व शुद्ध होती है। इससे दर्शकों को समझने में आसानी होती है। मेरा जन्म नर्मदापुरम जिले के इटारसी में हुआ, पढ़ाई पिपरिया में हुई, इसलिए हिंदी में कहीं कोई दिक्कत नहीं आती।
सवाल : मप्र के कई लोग मुंबई में पहुंच रहे हैं..क्या कोई संगठन भी है?
जवाब : फिल्म लेखन, निर्देशन, संगीत, एक्शन, कोरियोग्राफी, फाइट मास्टर हर विधा में मप्र के लोग मुंबई में हैं। विवेक शर्मा, नीतेश तिवारी, ब्रह्मेश तिवारी जैसे डायरेक्टर मप्र से हैं, जो बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन व आमिर खान जैसे दिग्गजों को लेकर फिल्में कर चुके हैं। मप्र के कलाकारों का ऐसा कोई संगठन मुंबई में नहीं है। राज्य सरकार इन कलाकारों को लेकर एमपी भवन में कोई गेट टू गेदर जैसे कार्यक्रम कर सकती है। इससे हम सबको भी एक दूसरे से मिलने का समय मिलेगा।
सवाल : मंच का कोई किस्सा जो याद आता है?
जवाब : बहुत वाकिए होते हैं। एक कार्यक्रम के दौरान एक बहुत सम्मानीय संत मंच पर थे। मैं परफॉर्म करने के लिए स्टेज पर गया तो संचालक ने छेड़ा कि गुरुजी इसको देखकर सोच रहे होंगे कि चिड़ियाघर का बंदर यहां कहां से आ गया। तब मैंने कहा कि संतों की कृपा हो जाए तो बंदर भी मंत्री बन सकता है, हमारा वाला तो एक बन भी गया है पंजाब में।