खर्राटों को लेकर रात भर की जा रही स्लीप स्टडी, इसके बाद शुरू होता है इलाज
स्लीप एपनिया के चलते पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़े होने लगते हैं क्योंकि एक के खर्राटों के कारण दूसरे को सोने में परेशानी होती है। कई बार यह खर्राटे इतने तेज होते हैं कि दूसरे कमरे में सोने वालों तक उनकी आवाज पहुंचती है। इतना ही नहीं इस निद्रा रोग के अब बच्चे भी इसका शिकार हो रहे हैं क्योंकि ठीक तरह से नींद पूरी न होना और पोटैटो काउच बने रहने के कारण उनके शरीर में फैट बढ़ने लगता है जिसका असर खर्राटों के रूप में सामने आता है। इसके यूं तो जेनेटिक कारण भी होते हैं लेकिन लंबे समय से चल रहे मेडिकेशन, एंडोक्राइन ग्लैंड में परेशानी, बढ़ता वजन, उम्र और हाइट के मुताबिक तय वजन से ज्यादा वजन होना इसके कारण हैं। जब खर्राटे तेज हों और झटके से नींद टूट जाए तो ये नींद से जुड़ा ब्रीदिंग डिसआॅर्डर स्लीप एपनिया कहा जाता है। नेशनल स्लीप एपनिया अवेयरनेस डे पर डॉक्टर्स से जाना क्या हैं, इसके कारण और नए इलाज, जिससे इस बीमारी पर काबू पा सकें।
बच्चे भी लेने लगे हैं खर्राटे
मेरे पास आजकल महीने में 30 से 40 केस स्लीप एपनिया निद्रा रोग के आ रहे हैं। महीने से चार से पांच बच्चे भी आते हैं जिन्हें खर्राटे आने लगे हैं। बच्चों में लाइफस्टाइल मोडिफिकेशन से बीमारी को ठीक कर पाते हैं लेकिन बड़ों के मामले में हर पेशेंट की स्लीप स्टडी करना होती है, जिसमें मरीज को स्लीपिंग रूम में परिवार के सदस्य के साथ रहना होता है। इस दौरान मरीज का आॅक्सीजन सेचुरेशन देखा जाता है, साथ ही सांस कितनी देर रूकी, उसके वापस आने की गति, आई बॉल मूवमेंट, ईसीजी, सांस लेने के दौरान पेट के ऊपर-नीचे होने की गति सहित अन्य तकनीकी टेस्ट किए जाते हैं उसके बाद मरीज का इलाज निर्धारित किया जाता है। किसी को मरीज को सी-पैक मशीन की जरूरत पड़ती है तो किसी को योग व डाइट से ठीक किया जाता है। डॉ. आरएन साहू, मनोचिकित्सक
करवट लेकर सोएं और रेगुलर योग करें
यह पतले लोगों को भी हो सकती है जिन्हें टॉन्सिल्स व हाइपोथायरायडिज्म है। जब व्यक्ति नींद में सांस नहीं ले पाता तो कई बार नींद में ही उसकी मृत्यु हो जाती है। होम्योपैथी में इसका सिस्टेमेटिक इलाज होता है। ऐसे लोगों को करवट लेकर सोने, योग व एक्सरसाइज की सलाह दी जाती है। डॉ. प्रमोद शंकर सोनी, होम्योपैथी