पांच माह में छह चीतों की मौत; अच्छी बात यह कि बाकी 14 स्वस्थ, बाड़े से खुले जंगल में दोबारा जाने को तैयार
कूनो अभयारण्य में चीतों का एक साल पूरा
भोपाल। ठीक एक साल पहले 17 सितंबर 2022 को कूनो अभयारण्य में नामीबिया से 8 चीते लाए गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें समारोहपूर्वक क्वारेंटाइन बाड़े में आजाद किया। दूसरे चरण में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को लाकर यहां छोड़ा गया था। इस अवधि में हमने 6 चीतों और तीन शावकों को भले ही गंवा दिया, लेकिन अच्छी बात यह रही कि बाकी 14 चीतों ने धीरे-धीरे सर्वाइव करना सीख लिया है। रविवार को फिर इन्हें खुले जंगल में छोड़े जाने की उम्मीद है। चीता प्रोजेक्ट से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के चीते अब यहां के वातावरण में पूरी तरह ढल गए हैं। उन्हें जल्द ही बाड़ों से खुले जंगल में छोड़ा जाएगा। हालांकि, पूर्व के अनुभवों को देखते हुए कुछ सावधानी बरती जाएगी। कुछ चीतों को कॉलर आईडी लगाए जाएंगे और कुछ को बिना कॉलर आईडी के ही जंगलों में छोड़ा जाएगा।
एक साल का प्रयोग काफी सफल :
चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन असीम श्रीवास्तव कहते हैं कि एक वर्ष में 30 फीसदी चीतों की मौत हुई है। यह चीता एक्शन प्लान में बताए गए सर्वाइवल रेट के अनुसार ही है। तीन चीतों की मौत गले में इन्फेक्शन, एक की किडनी फेल होने, एक की बीमारी से और एक की हमले से मौत हो गई थी।
ज्वाला ने चार शावकों को दिया जन्म, एक ही बचा :
नामीबिया से लाई गई मादा चीता ज्वाला (सियाया) ने 27 मार्च 2023 को चार शावकों को जन्म दिया था। इनमें से पौने दो महीने बाद तीन शावकों की मौत हो गई। एक शावक (मादा) जिंदा है और 150 दिन की हो गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, वह पूरी तरह स्वस्थ है।
गांधी सागर होगा चीतों का नया ठिकाना :
दक्षिण अफ्रीका से लाए जाने वाले 12 चीतों को मंदसौर के गांधी सागर में रखा जाएगा। 368 वर्ग किमी में फैले गांधी सागर में चीतों को बसाने का काम दिसंबर तक पूरा होगा। नए साल में चीते छोड़े जाने की संभावना है। यहां चीतों को बसाने के लिए दो प्लान बनाए गए हैं। प्लान ए में चीते साउथ अफ्रीका से लाने और प्लान-बी में वहां से चीते की औपचारिकताओं में देरी होने पर कूनों से कुछ चीते यहां छोड़े जा सकते हैं। एक जगह से लाए गए चीतों को एक ही जंगल या बाड़े में नहीं छोड़ा जाएगा, क्योंकि इसमें अनुवांशिक समस्या आ सकती है।
अफ्रीका से चीतों को आयात और उनमें से नौ को विदेशी भूमि में मरने की अनुमति देना लापरवाही का भयावह प्रदर्शन है। हमें उनके संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। - वरुण गांधी, सांसद