मनुष्य में विवेक जागृति का मार्ग प्रशस्त करती है शिवपुराण कथा

मनुष्य में विवेक जागृति का मार्ग प्रशस्त करती है शिवपुराण कथा

इंदौर। संसार में हमारे सभी कर्म सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण से भरे होते हैं। शिवपुराण कथा हमें अपने कर्मों को सही दिशा की ओर प्रवृत्त करने वाली कथा है। यह कथा हमारे विवेक की जागृति का मार्ग प्रशस्त करती है। प्रशंसा से अभिमान और अभिमान से पतन निश्चित होता है, लेकिन मन और बुद्धि के समन्वय से ही हम तमोगुण से बच सकते हैं।

बुद्धि तभी निर्मल और पवित्र होगी, जब हम सदगुणों को आत्मसात करेंगे। शिवपुराण पाप से निवृत्त होने की कथा है। सत्संग और भगवान की कथा जीवन को अपने परम लक्ष्य की ओर ले जाने के मार्ग का प्रकाश पुंज है। ये विचार हैं वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद महाराज की सुशिष्या साध्वी कृष्णानंद के, जो उन्होंने गीता भवन में आयोजित शिवपुराण कथा के दौरान व्यक्त किए। प्रारंभ में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, श्याम अग्रवाल मोमबत्ती, महेश चायवाले, गोविंद लाला, नेमीचंद पाटीदार, राजाराम पाटीदार, गोपाल नेमानी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।

कथा में साध्वी कृष्णानंद के श्रीमुख से मनोहारी भजनों की गंगा भी प्रवाहित हो रही है। इस दौरान शिवलिंग पूजन विधि, भस्म एवं रुद्राक्ष महिमा, पार्वती जन्मोत्सव, शिव-पार्वती विवाह, कार्तिकेय जन्म प्रसंग, तुलसी जालंधर कथा, शिवरात्रि व्रत कथा, जप का महत्व एवं भगवान शिवाशिव की आराधना से जुड़े विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या होगी। साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि थोड़ी सी सफलता मिलने पर ही जीवन में हम सबको अहंकार घेर लेता है। चिंतन करें कि भगवान भी कर्ता है और इस सृष्टि का पालन, पोषण एवं जिम्मेदारियों का निर्धारण भी वे स्वयं करते हैं, लेकिन उन्हें कभी अहंकार नहीं होता।