रियल एस्टेट पर जीएसटी के प्रावधान समझने के लिए सेमिनार आयोजित
इंदौर। रियल एस्टेट के अंतर्गत व्यावसायिक एवं रहवासी कॉम्प्लेक्स के निर्माण एवं विक्रय पर जीएसटी के नियम बेहद जटिल हैं। सरकार द्वारा 1 अप्रैल, 2019 से इसको सरल करने का प्रयास किया गया है, परन्तु विशेषज्ञों की मानें तो इन नियमों को सरल करने के साथ बहुत सारी शर्तें जोड़ दी गई हैं। अब बिल्डर्स को इनका पालन करने में मुश्किलें आ रही हैं। इन्हीं प्रावधानों को समझने एवं इनकी व्याख्या करने के लिए टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की इंदौर शाखा द्वारा संयुक्त रूप से एक सेमिनार का आयोजन किया गया।
मुख्य वक्ता सीए कृष्ण गर्ग ने सभा को संबोधित करते हुए बताया कि किसी भी व्यावसायिक एवं रहवासी बिल्डिंग पर जीएसटी तभी लगता है, जबकि निर्माण कार्य चल रहा हो एवं उस पर स्थानीय प्राधिकारी से कम्पलीशन सर्टिफिकेट प्राप्त नहीं कर लिया गया हो। कम्प्लीशन सर्टिफिकेट प्राप्त होने के बाद बेची गई इकाइयों पर कोई टैक्स देय नहीं होता, क्योंकि ऐसी दशा में वह अचल संपत्ति का रूप ले लेती है, जो जीएसटी के दायरे से बाहर है।
जीएसटी की दरों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि व्यावसायिक एवं रहवासी इकाई के मूल्य में से एक-तिहाई राशि सरकार द्वारा भूमि के संबंध में छूट दी जाती है एवं बचे हुए मूल्य पर ही जीएसटी देय होता है। व्यावसायिक इकाइयों की दशा में कुल मूल्य पर प्रभावी दर 12 प्रतिशत एवं रहवासी की दशा में यह 5प्रतिशत होती है। उन्होंने यह भी कहा कि इंदौर चूंकि मेट्रो सिटी की परिभाषा में नहीं आता, अत: यहां यदि किसी रहवासी इकाई का कुल क्षेत्रफल 90 वर्गमीटर (969 वर्गफीट) से कम है एवं उसकी प्रतिफल राशि 45 लाख से कम है तो वह अफोर्डेबल हाउसिंग में होने के कारण उस पर 1 प्रतिशत की दर से कर देना होगा।
सीए नवीन खंडेलवाल ने इस संबंध में कहा कि सरकार द्वारा बिल्डर को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलने के साथ यह भी शर्त जोड़ी गई है ...उन्हें कुल निर्माण लागत का 80प्रतिशत माल एवं सेवाएं रजिस्टर्ड व्यापारी से ही लेना होंगी। इसमें भी सीमेंट एवं कैपिटल गुड्स पूर्णतया रजिस्टर्ड व्यापारी से ही लेने होंगे। इससे कम होने की दशा में बिल्डर को रिवर्स चार्ज में टैक्स की राशि स्वयं भरना होगी। इसके अलावा क्लब हाउस, इलेक्ट्रिक चार्जेज, सोसाइटी मेंटेनेंस चार्जेज इत्यादि अलग से वसूल किए गए चार्जेज पर 18 प्रतिशत की दर से ही कर भुगतान करना होगा। टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसो. के अध्यक्ष सीए शैलेन्द्र सोलंकी ने कहा कि जीएसटी लागू हुए 6 साल हो चुके हैं एवं सरकार का जीएसटी का संग्रह नित नई ऊंचाइयां छू रहा है। अत: अब वक्त आ गया है कि सरकार जीएसटी के सरलीकरण के बारे में विचार करे।