मानस भवन में व्यापारिक गतिविधियां देख ननि की चुप्पी पर उठ रहे सवाल, लग चुका है करोड़ों का चूना
ग्वालियर। धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यों के लिए रामचरित मानस समिति को मिले मानस भवन के व्यवसायिक उपयोग का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया है। हालांकि इस मामले को लेकर पहले ही ईओडब्ल्यू में शिकायत की गई है, लेकिन अब भी अनदेखी पर निगम अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं? कि आखिर निगम संपत्ति के दुरुपयोग का मामले में परिषद से ठहराव बाद भी पुन: आधिपत्य में क्यों नहीं ली जा रही है? साथ ही निगम अधिकारी क्यों समिति को लाखों का लाभ लेने के लिए मौका दे रहे हैं?
प्रदेश शासन के पत्र क्रमांक 18 फरवरी 1975 के माध्यम से रामचरित मानस चतु: शताब्दी समारोह समिति ग्वालियर को 25120 वर्ग फुट भूमि हस्तांतरित की गई थी। जिसमें शर्ते थी कि समिति भूमि का उपयोग धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए ही करेगी और व्यापारिक कार्य, शॉपिंग मॉल, सेल सहित अन्य व्यवसायिक कार्य पूर्णत: प्रतिबंधित रहेंगे। साथ ही शर्तों की अनदेखी पर नगर निगम आवंटित भूमि को तत्काल वापस ले लेगी। इसके बाद प्रशासक कार्यालय के संकल्प क्रमांक 19 दिनांक 13 अप्रैल 1983 में मानस भवन उपयोग समिति निर्णय अनुसार भवन की समस्त आय नगर निगम को प्राप्त करनी थी।
लेकिन मानस भवन समिति द्वारा आवंटन शर्तों का जमकर उल्लंघन करते हुए व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है। साथ ही मानस समिति द्वारा निगम राजस्व विभाग को कोई आय प्रदाय नहीं की गई है। जिससे बीते 30 वर्षों से ज्यादा के समय में निगम को करोड़ों रूपये की हानि हुई है।
जनकल्याण अधिकारी की निगरानी में होना था संचालन
तत्कालीन महापौर डॉ. धर्मवीर सिंह के पत्र 17 जनवरी 19985 को जो सचिव कोमलसिंह सोलंकी तुलसी मानस प्रतिष्ठान को लिखा गया था मानस भवन की व्यवस्था व संचालन, आय-व्यय का हिसाब निगम जनकल्याण अधिकारी की देखरेख में होगा और समिति केवल प्रबंधन का कार्य करेगी।
सांठगांठ वाले सवालों के घेरे में निगम अधिकारी
मानस भवन की आय-व्यय का हिसाब रखने, भवन की चाबी अपने पास रखने, इतने सालों तक अनदेखी क्यो? जैसे अनेक सवालों के घेरे में निगम अधिकारी है। साथ ही इस सांठगांठ को लेकर ईओडब्ल्यू कार्यालय सहित निगमायुक्त किशोर कान्याल को शिकायत की जा चुकी है।
सभापति के पार्षदीकाल में हंगामे पर हुआ था कब्जा लेने का ठहराव
मानस भवन के धार्मिक-सांस्कृतिक उपयोग को छोड़ व्यवसायिक इस्तेमाल करने पर वर्तमान सभापति मनोज तोमर के पार्षदी कार्यकाल के दौरान परिषद में प्रस्ताव लाकर दुरूपयोग पर जमकर हंगामा मचाया था। जिसके बाद परिषद से ठहराव क्रमांक 836 दिनांक 9 अक्टूबर 2004 के अनुसार निगम को पुन: अपने आधिपत्य में लेने व उसकी चाबी क्षेत्राधिकारी के पास रहने का प्रस्ताव पारित किया गया था। लेकिन निगम ने बीते 17 सालों में कभी भी अपनी संपत्ति को वापस लेने की कोशिश नहीं की गई।
मेरे पार्षदी काल में ठहराव हुआ था, लेकिन उसके बाद क्या हुआ, मुझें पता नहीं। अब यदि सदन में विषय आता है, तो सख्त कार्रवाई के लिए कहा जाएगा। मनोज तोमर, सभापति, नगरनिगम