स्क्रीन टाइम से भी बच्चों में बढ़ रहा दृष्टि दोष
इंदौर। छोटी उम्र और किशोरावस्था में ही आंखों का कमजोर हो जाना आज के टाइम पर एक बड़ी समस्या है। एक वक्त पर जब आंखों की रोशनी सिर्फ बुजुर्गों में कम होती थी, लेकिन अब छोटे-छोटे बच्चे भी चश्मा लगाए हुए दिख जाते हैं। आज के वक्त में ज्यादा स्क्रीन टाइम बिताना बच्चों में कमजोर दृष्टि का मुख्य कारण बन रहा है। उम्र 5 साल हो या 22 साल, हर कोई अपने दिन के आधा से ज्यादा वक्त स्क्रीन टाइम पर बिता रहा है। फिर चाहे वो टीवी हो, मोबाइल हो या फिर लैपटॉप। आंखों के लिए विटामिन और मिनरल्स बहुत जरूरी है। डाइट में इनकी कमी आंखों की समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं। बच्चों को सूर्य की रोशनी में खेलने दें, उनका मोबाइल देखना बिल्कुल बंद करें। विजन थेरेपी की जरूरत तब होती है जब मष्तिष्क में एक इमेज नहीं बन पाती एवं ड्यूल इमेज की समस्या होने लगती है।
यह आंखों की मसल्स के लिए बेहद कारगर होती है। अहमदाबाद के वरिष्ठ लेक्चरर ऑप्टोमेट्रिस्ट अतानु सामंता ने यह बात कही। अल्पदृष्टि, विजन थैरेपी पर डिविजनल ऑप्टोमेट्री ब्लाइंड वेलफेयर एसो. एवं ऑप्टोमेट्री काउंसिल ऑफ इंडिया के संयुक्त संयोजन में आयोजित तीसरी नेशनल ऑप्टोमेट्री कॉन्फ्रेंस में मप्र, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, यूपी, पंजाब और कर्नाटक के 200 से अधिक दृष्टि दोष विशेषज्ञ शामिल हुए। चेन्नई से आए ऑप्टोमेट्रिस्ट डॉ. संजय मेहता ने चश्मे की उपयोगिता को बताते हुए कहा, जब दूर की चीजें कम या धुंधली नजर आती हैं तो इस स्थिति को मायोपिया कहते हैं। आईबॉल की लंबाई ज्यादा होने के कारण यह समस्या होती है।
भारती विद्यापीठ सांगली महाराष्ट्र में ऑप्टोमेट्री संकाय के विभागाध्यक्ष ऑप्टोमेट्रिस्ट अजित लिमये ने आंखों से जुड़े रोग ड्राई आई की जानकारी देते हुए कहा आंख की कई ऐसी बीमारियां हैं जो जन्म से होती हैं या जन्म के कुछ वक्त बाद होती हैं, इसी में से एक बीमारी 'लो विजन' या 'अल्प दृष्टि' है। बैंगलोर से आई ऑप्टोमेट्री काउंसिल ऑफ इंडिया की सीओओ ऑप्टोमेट्रिस्ट पॉला मुखर्जी ने बताया, मधुमेह का भी आंखों पर गंभीर एवं नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कॉफ्रेंस में इंदौर डिविजनल ऑप्टोमेट्रिस्ट ब्लाइंड वेलफेयर एसो. के अध्यक्ष ऑप्टोमेट्रिस्ट शैलेन्द्र वैष्णव, सचिव धर्मेन्द्र आनिया एवं प्रवक्ता गजराज सिंह पंवार समेत देशभर से आए ऑप्टोमेट्रिस्ट मौजूद थे।