नारी शक्ति वंदन’
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन में पहले दिन लोकसभा एवं विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण देने वाला संविधान का 128वां संशोधन वाला ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक 2023’ पेश किए जाने की घोषणा की और संसद के दोनों सदनों के सांसदों से अपील की कि वे इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करके इसे और मजबूत बनाएं। इस पर बुधवार को चर्चा होगी। मोदी ने कहा कि मेरा आग्रह है कि इस विधेयक पर सर्वसम्मति से फैसला हो। मोदी ने दोपहर सवा 1:00 बजे नए संसद भवन में लोकसभा के नए सदन में अपने उद्घाटन भाषण में ये ऐलान किया। प्रधानमंत्री के भाषण के बाद सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने अपने विचार व्यक्त किए और इसके बाद कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संविधान का 128वां संशोधन करने वाला नारी शक्ति वंदन विधेयक 2023 पेश किया।
पारित कराने के लिए दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत जरूरी:
मौजूदा लोकसभा में सत्ताधारी गठबंधन का बहुमत है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी महिला आरक्षण के समर्थन में है। इसके अलावा बीआरएस, वामपंथी दल भी इसे लागू करना चाहते हैं। इसे पारित करने लोकसभा व राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। विधानसभाओं में आधे से ज्यादा राज्यों की सहमति भी जरूरी होगी।
2029 से पहले लागू होना संभव नहीं:
महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण परिसीमन के बाद ही लागू होगा। विधेयक के कानून बनने के बाद जो पहली जनगणना होगी, उसके आधार पर परिसीमन होगा। 2029 से पहले परिसीमन लगभग असंभव है, क्योंकि 2021 की जनगणना अभी होना बाकी है। यह कानून लागू होने के बाद 15 साल तक अमल में रहेगा।
लोस में 82 से बढ़ कर 181 हो जाएंगी महिला सदस्य
लोकसभा में कुल सदस्य संख्या 543 है। वर्तमान में लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 82 है। विधेयक पास होने के बाद लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या बढ़कर 181 हो जाएगी।
बिल के अनुसार महिला आरक्षण का गणित
- इस विधेयक में लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
- इस 33 फीसदी में से एक तिहाई सीटें अजा और जजा की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी है।
- विधेयक के अनुसार, लोकसभा में महिला आरक्षण लागू होने के बाद एक तिहाई यानी 181 में से 44 सीटें एससी-एसटी महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी।
कई बार हुए बिल पास कराने के प्रयास
- पहली बार इसे एचडी देवेगौड़ा वाली संयुक्त मोर्चा सरकार ने 1996 को 81वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। लालू प्रसाद, मुलायम सिंह और शरद यादव समेत कई नेताओं ने इसका विरोध किया।
- अटल सरकार में तीन बार, 2008 में मनमोहन सरकार में पेश हुआ। इसे 9 मार्च 2010 को राज्यसभा से पारित कराया गया।
आदरणीय सर, क्या हमारे देश में आगे बढ़ने या भागीदारी दिखाने के लिए आरक्षण ही एक मात्र विकल्प है? पहले जातिगत, अब जेंडर वाइज आरक्षण। तो सिर्फ मर्द व औरत ही क्यों? ट्रांसजेंडर भी उतना ही हक रखते है। जब लिंग के कॉलम में यह विकल्प है, तो यहां क्यों नहीं?- आकाश शर्मा, शिक्षक
प्रथम सत्र के प्रथम दिवस का यह अवसर कई मायनों में अभूतपूर्व है। यह आजादी के अमृतकाल का उषाकाल है। भारत अनेक सिद्धियों के साथ नए संकल्प लेकर, नए भवन में अपना भविष्य तय करने के लिए आगे बढ़ रहा है। जब हम नए अध्याय की शुरुआत कर रहे हैं तो हमें अतीत की सभी कड़वाहटों को भूल जाना चाहिए। - नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री