रूद्राभिषेक,शिवार्चन के साथ हर-हर महादेव की गूंज,शारदा मंदिर पहुंचे झंडे
जबलपुर। कहीं शिव जी का अभिषेक तो कहीं रूद्राभिषेक,हर जगह गगनभेदी हर-हर महादेव की गूंज ने श्रावण और पुरषोत्तम मास के संयोग से भक्ति की गंगा अविरल प्रवाहित होते नजर आई। पांचवे सोमवार पर शिव मंदिरों में तड़के से भक्तों की भीड़ आने लगी जो देर शाम तक कतारों में अपनी बारी की प्रतीक्षा करते रहे। वहीं मदनमहल की पहाड़ी में स्थित मां शारदा के प्राचीन मंदिर में झंडा लेकर युवा बड़ी संख्या में पहुंचते रहे। कांवड़ यात्राओं का क्रम भी जारी है। नर्मदा जी के तट से जल लेकर शंकर जी पर चढ़ाने के लिए मीलों कांवड़ रखकर पैदल यात्रा की जा रही हैं।
कांवड़ यात्रियों का लोग जगह- जगह स्वागत सत्कार कर रहे हैं। ज्यादातर लोग सावन सोमवार में व्रत भी रखते हैं। मंदिरों में भगवान भोलेनाथ का अलग-अलग दिन आकर्षक श्रृंगार किया जा रहा है। शारदा देवी मंदिर में लोगों की भारी भीड़ पहुंची जिन्होंने यहां पर लगे मेले का भी आनंद लिया। संयोग से सोमवार को मौसम भी खुला रहा जिसके चलते यहां आने वालों का उत्साह दोगुना हो गया।
अनुष्ठान के लिए कतारें
भगवान भोलेशंकर का अभिषेक पूजन करने के लिए शिवमंदिरों में भारी भीड़ रही। गुप्तेश्वर महादेव मंदिर,विजय नगर वाले बड़े शंकरजी,ग्वारीघाट स्थित सोमेश्वर धाम,साकेतधाम, गढ़ा, अधारताल, रानीताल, मदनमहल स्थित शिवमंदिरों में पूजन,अनुष्ठान करने लोग धैर्यपूर्वक अपनी बारी की प्रतीक्षा करते रहे और नंबर आने पर श्रद्धावनत होकर अपना अनुष्ठान संपन्न कर ही उठे। भगवान भोलेनाथ का अनुपम श्रृंगार के दर्शन करने लोग शिव मंदिरों में पहुंचे।
चटपटे और मीठे व्यंजनों का लुत्फ और झूलों का आनंद
शारदा मंदिर जाने वाले परिवारों ने यहां नीचे लगे मेले में जमकर स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेते हुए झूलों में झूलकर खुशी हासिल की। मेले में झूलों में नंबर आने के लिए लोग प्रतीक्षा भी करते रहे। सबसे ज्यादा बच्चों में झूलों का आकर्षण रहा। वहीं मंदिर में भगवती शारदा अम्बा के दर्शन कर लोगों ने मदनमहल किले जाकर भी इसे देखा।
अभी 3 सोमवार और
गौरतलब है कि अधिकमास होने के कारण इस बार सावन दो महीनों का है,लिहाजा इस बार 8 सोमवार का संयोग है। पांच सोमवार हो चुके हैं अब 3 सोमवार और सावन के तहत आने हैं। घरों-घर अनुष्ठान जारी हैं और पार्थिव शिवलिंग निर्माण के काम में भी नारी शक्ति जुटी हैं। दिन में शिवलिंग के निर्माण के उपरांत ये इन्हें शाम को निकटवर्ती तालाबों या नर्मदा तट पर जाकर विसर्जित करती हैं।