रिजर्व एंटीबायोटिक बेअसर, 80% मरीजों की जान खतरे में
नई दिल्ली। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली के नए शोध के मुताबिक देशभर के आईसीयू में भर्ती गंभीर इंफेक्शन के शिकार कई मरीजों पर कोई भी एंटीबायोटिक दवा काम नहीं कर रही है। ऐसे मरीजों की मौत का खतरा बढ़ता जा रहा है। सबसे लेटेस्ट दवा जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रिजर्व कैटेगरी में रखा है, वो भी काम नहीं कर रही है। रिजर्व कैटेगरी की दवा का मतलब होता है कि इसे चुनिंदा मौकों पर ही इस्तेमाल किया जाए। देश के तमाम अस्पतालों के साथ मिलकर एम्स ने एक रिपोर्ट तैयार की है।
सबसे असरदार एंटीबायोटिक भी केवल 20% में ही कारगर पाए जा रहे हैं। यानी बाकी बचे 60% से 80% मरीजों की जान खतरे में हैं। इसकी वजह धड़ल्ले से मरीजों और डॉक्टरों का मनमर्जी से एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करना है। दिल्ली एम्स ट्रॉमा सेंटर की इंफेक्शन कंट्रोल पॉलिसी को पूरे देश में लागू करने के लिए डॉ. पूर्वा माथुर की निगरानी में सभी अस्पतालों को जोड़ा जा रहा है। डॉ. पूर्वा के मुताबिक दक्षिण के राज्यों में उत्तर भारत के मुकाबले इंफेक्शन कम पाया जा रहा है। इसी तरह मोटे तौर पर प्राइवेट अस्पतालों का इंफेक्शन कंट्रोल सरकारी अस्पतालों से बेहतर है।
थोड़ी राहत: ब्लड इंफेक्शन के मामलों में आई कमी
एम्स ट्रॉमा सेंटर की प्रो. डॉ पूर्वा माथुर ने कहा कि पिछले सात सालों में ब्लड इंफेक्शन के मामले में कमी आई है। यह पहले प्रति एक हजार डिवाइस डे में 14 को होता था। यानी जब आईसीयू में मरीज एडमिट होता है तो उनमें कई प्रकार के डिवाइस लगे होते हैं, जिसकी वजह से उनमें हॉस्पिटल एक्वायड इंफेक्शन होता है। हमने इसमें कमी दर्ज की है और अब यह 14 से घटकर 9 रह गया है। लेकिन डॉक्टर पूर्वा ने कहा कि वेंटिलेटर निमोनिया जो पहले 6 से 8 परसेंट था, वह आज भी उतना ही है। इसमें कोई कमी नहीं आई है। इस पर हमें ज्यादा काम करने की जरूरत है।
हॉस्पिटल के डिवाइस फैला रहे बीमारी:डॉ. पूर्वा के मुताबिक अस्पतालों के आईसीयू में, मरीज को लगाए जाने वाले कैथेटर, कैन्युला और दूसरे डिवाइस में कई बैक्टीरिया और जीवाणु पनपते रहते हैं। ये इंफेक्शन पहले से बीमार और कमजोर इम्युनिटी वाले मरीजों को और बीमार करने लगते हैं। लंबे समय तक आईसीयू में भर्ती मरीजों को ऐसे इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
खून में इंफेक्शन पहुंचने से पूरे शरीर के लिए मुसीबत
दिल्ली एम्स ट्रॉमा सेंटर की डॉ. पूर्वा माथुर के अनुसार अब ये इंफेक्शन खून में पहुंच रहे हैं। खून में पहुंचने का मतलब है कि पूरे शरीर में सेप्टिक होने का खतरा बढ़ रहा है। इस कंडीशन के गंभीर होने पर धीरे-धीरे मरीज के अंग काम करना बंद करने लगते हैं, जिसे मल्टी आॅर्गन फेल्यिर कहा जाता है।
वेंटिलेटर से पनपता है इंफेक्शन का खतरा
निमोनिया के मरीज जो लंबे समय तक हॉस्पिटल में वेंटिलेटर पर रहते हैं, ऐसे मरीज जिन्हें लंबे समय तक कैन्युला, कैथेटर या यूरिन बैग लगे रहते हैं, उनमें ऐसे खतरनाक इंफेक्शन के पनपने का खतरा बना रहता है। इसके लिए साफ-सफाई का ध्यान जरूरी है। - डॉ. कामरान फारुकी, चीफ, एम्स ट्रामा सेंटर , दिल्ली