7 दशक बाद नामांतरण किया जाना सन्देहस्पद एवं अवैधानिक: हाईकोर्ट
जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने सार्वजनिक तालाब को निजी लोगों के नाम दर्ज किए जाने संबंधी मामले में रीवा कमिश्नर द्वारा एसडीएम व तहसीलदार के आदेश को निरस्त करने सही ठहराया है। जस्टिस डीडी बंसल की एकलपीठ ने कहा है कि सात दशक बाद नामांतरण किया जाना संदेहास्पद व अवैधानिक है। एकलपीठ ने दायर याचिका खारिज करते हुए आवेदक को स्वतंत्रता प्रदान की है कि वह सिविल वाद दायर करके मालिकाना हक प्रमाणित करने स्वतंत्र है।
मामले में अनावेदकों की ओर से कहा गया कि शासन की जमीन पर राजस्व अधिकारियों से मिलीभगत करके लगभग 15 एकड़ तालाब की जमीन जो बाबा तालाब के नाम से शासकीय नाम दर्ज थी को 2 जून 2009 को बिना किसी अधिकार के सुमेर सिंह द्वारा अपने नाम दर्ज कराकर विक्रय कर दी गई। इतना ही नहीं तहसीलदार द्वारा नामांतरण प्रमाणित करके खरीददारों के नाम दर्ज कर दी गई। तहसीलदार तथा राजस्व अधिकारियों के उक्त कृत्य के विरुद्ध ग्राम पंचायत गुलवारा तहसील रामनगर जिला सतना ने एसडीएम के समक्ष अपील की जिसे लिमिटेशन के आधार पर खारिज कर दिया गया। जिसके बाद ग्राम पंचायत द्वारा जनहित में कमिश्नर रीवा के समक्ष अपील प्रस्तुत की गई।
कमिश्नर रीवा द्वारा 26 दिसंबर 2020 को विस्तृत आदेश पारित करके पाया की उक्त जमीन ग्राम गुलवारा सर्वे क्रमांक 535, 536, 537, 39, 40, 41, 122,123, 126, 127 वर्ष 1959 से वर्ष 2009 तक राजस्व अभिलेख मे शासकीय भूमि के रूप में दर्ज रही है। जिसे 1939 मे एक पट्टे के आधार पर मृतक के वारसानों का 72 वर्ष के बाद बिना विधिक प्रक्रिया के एसडीएम अमरपाटन तथा रामनगर वृत्त के तहसीलदार द्वारा नाम दर्ज किए गए हैं। जिसे कमिश्नर द्वारा निरस्त करने का आदेश पारित किया गया। कमिश्नर के उक्त आदेश के विरूद हाईकोर्ट में सुनीता त्रिपाठी की ओर से यह याचिका दायर की गई थी। सुनवाई के पश्चात न्यायालय ने पाया कि कमिश्नर रीवा द्वारा पारित आदेश उचित तथा वैधानिक है एवं याचिका निरस्त करते हुए याचिकाकर्ता को सिविल कोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी है। ग्राम आम जनता पंचायत गुलवारा गुजारा की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने पक्ष रखा।