‘श्रीराम महात्मय और महिमा’ किताब में संजोए भोपाल के लखेरापुरा से लेकर बैरसिया तक के राम
संस्कृति विभाग और जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा तैयार करवाई गई किताब ‘श्रीराम महात्मय और महिमा’ में यूं तो 6821 मंदिरों को लेखा-जोखा है, लेकिन यदि हम बात करें सिर्फ भोपाल की तो इस किताब में भोपाल और बैरसिया में कुल 13 राम मंदिर हैं, जिनकी मान्यताएं और कहानी बड़ी ही दिलचस्प हैं। इस बारे में आईएम भोपाल ने पड़ताल की तब पता चला कि लखेरापुरा स्थित श्री त्रिभुवन लालजी मंदिर, जिसका निर्माण भोपाल के दीवान त्रिभुवन लालजी ने वर्ष 1860 में करवाया था, तब ऐसा क्या हुआ कि बेगम सिकंदर जहां को बीच रास्ते से वापस जाना पड़ा। कुछ ऐसी ही कहानी नर्मदापुरम के श्रीराम जानकी मंदिर की है, जहां आज भी पालीवाल परिवार की आठवीं पीढ़ी इस मंदिर की देखरेख कर रही है। वहीं उज्जैन के राम जर्नादन मंदिर जिसका निर्माण 18वीं सदी में हुआ। उस मंदिर की मिट्टी से निकलकर क्यों पुनर्प्रतिष्ठित कराया गया। इन सबके बारे में इस किताब में रोचक जानकारियां दी गईं हैं। इस किताब का बहुत जल्द सीएम डॉ. मोहन यादव विमोचन करेंगे।
भोपाल के दीवान त्रिभुवन लालजी ने करवाई थी स्थापना
लखेरापुरा स्थित श्री त्रिभुवनलालजी का मंदिर निर्माण साल 1860 में भोपाल रियासत के दीवान त्रिभुवन लालजी ने करवाया था। वर्ष 1860 में भोपाल नवाब की बेगम सिकंदर जहां वापस इस रास्ते से गुजर रहीं थीं, तब उनका घोड़ा बिदक गया और वे आगे ही नहीं बढ़ सकी। उन्हें बीच रास्ते से ही लौटना पड़ा। यह बात उन्होंने अपने दीवान त्रिभुवनलाल को बताई। उन्होंने उस स्थान का जायजा लेकर बताया कि यह दिव्य स्थान है। त्रिभुवन लाल के द्वारा बाद में यहां पर राम दरबार की स्थापना की गई। उन्हीं के नाम पर इस मंदिर को त्रिभुवन लालजी का मंदिर कहा जाता है।
पालीवाल परिवार की आठवीं पीढ़ी कर रही देखरेख
श्री राम जानकी मंदिर नर्मदापुरम मुख्यालय के सेठानी घाट पर स्थित है। वे बताते हैं कि पालीवाल परिवार में जितनी संतानें होती थीं, सभी की मृत्यु हो जाती थी। जब लच्छीराम नामक बालक का जन्म हुआ, तब उनके पिता ने श्री राम भगवान से प्रार्थना की, यदि यह बालक जिंदा रहा तो मैं आपके मंदिर का निर्माण करवाऊंगा। यह बालक जीवित रहा और उनके पिता ने इसी बालक के नाम पर श्री राम जानकी मंदिर का निर्माण करवाया। तब से लेकर अभी तक पालीवाल परिवार की आठवीं पीढ़ी इस मंदिर की देखरेख करती है। यह मंदिर करीब 200 साल पुराना है।
सपने में दिखे भगवान तब मिट्टी से निकलवाई प्राचीन प्रतिमाएं
उज्जैन के राम जर्नादन मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में राजा जयसिंह द्वारा करवाया गया था। मंदिर में विष्णु के जर्नादन रूप की प्रतिमा पूजनीय है। राम मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम, सीता, लक्ष्मण तथा हनुमानजी की प्राचीन प्रतिमाएं हैं। ये तीनों ही वनगमन प्रतिमाएं चलती हुई मुद्रा में हैं। श्री राम की मूर्ति में चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ है, सिर पर जटा है और संपूर्ण प्रतिमा वनवासी रूप में है। कहते हैं कि उज्जैन के जहाज वाले सेठ को स्वप्न में राम वनगमन प्रतिमा के दर्शन हुए और उन्होंने मिट्टी में दबी इन प्राचीन प्रतिमाओं को पुनर्प्रतिष्ठित कराया।
मंदिर के शोध में निकली कथाएं
इस किताब में प्रदेश के 6821 राम मंदिरों का तस्वीर के साथ विस्तृत विवरण है। धर्मेंद्र पारे के मार्गदर्शन में इस किताब को लेकर 21 सर्वेक्षणकतार्ओं ने मंदिरों पर रिसर्च की। रिसर्च में कई कथाएं निकलकर सामने आई हैं। किताब में उन मंदिरों का जिक्र है जो मुख्य मंदिर हैं या जिनसे कोई मान्यता या फिर कथा जुड़ी हुई हैं। इस किताब का बहुत जल्द सीएम डॉ. मोहन यादव विमोचन करेंगे। -अशोक मिश्रा, क्यूरेटर, जनजातीय संग्रहालय