ई-नपा सॉफ्टवेयर बंद होने से संपत्तिकर-जलकर वसूली ठप, 17 दिन में मिले 3 करोड़
ग्वालियर। 26 दिन पहले बंद हुआ ई-नगर पालिका सॉफ्टवेयर चालू न होने से नगर निगम को मिलने वाले संपत्तिकर-जलकर वसूली की रफ्तार बिल्कुल थम सी गई है। हालात यह हैं कि नए वित्तीय वर्ष के पहले 17 दिन गुजरने पर नगर निगम को मात्र निगम खाते में केवल 3 करोड़ की राशि ही जमा हो पाई है। हालांकि निगम कर्मचारियों-अधिकारियों को शासन से मिली 9 करोड़ की चुंगी-क्षतिपूर्ति व लगभग 3 करोड़ की पीएमएवाई राशि से वेतन-पेंशन का भुगतान किया जा चुका है। नगर निगम ने आचार संहिता लगने से पहले बिना निगमायुक्त की मंजूरी के ठेकेदारों को बड़ी-बड़ी राशि के भुगतान कर दिए थे, इसका नतीजा यह हुआ कि निगम का खजाना खाली हो गया।
निगमायुक्त के संज्ञान में यह मामला आते ही उन्होंने तत्काल ही ठेकेदारों को हो रहे भुगतान की फाइलों पर रोक लगवा दी और वित्त विभाग को साफ निर्देश दिए कि बिना उनकी अनुमति के फिलहाल भुगतान नहीं किए जाएं। जानकारों की मानें तो अब स्थिति यह है कि निगम के पास रिजर्व फंड के रूप में केवल कर्मचारियों के वेतन में से कटोत्री होने वाली राशि की एफडी है और निगम के खाते में न के बराबर रकम है। ऐसे में निगम के ऊपर हो चुकी लगभग 100 करोड़ की देनदारियों को लेकर जबरदस्त परेशानी बनी हुई है। क्योंकि ठेकेदारों को नवंबर माह में दीपावली के पहले से भुगतान नहीं किए जा रहे हैं और उसके संबंध में नाराज ठेकेदार निगमायुक्त से मुलाकात कर अपनी परेशानी बता चुके हैं और उन्हें 15 जनवरी तक रुकने तक का समय दिया गया था, जो निकलने पर भी भुगतान नहीं हुए हैं।
पीएमएवाई से लगातार ले रहे हैं पैसा
निगम जानकारों का कहना है कि पानी-सीवर ठेकेदारों द्वारा बीते 5-7 महीने से भुगतान न होने पर काम बंदी का अल्टीमेटम दे दिया था। जिस पर मनाही के बाद लगभग साढ़े 5 करोड़ की राशि पीएमएवाई मद से ठेकेदारों को दिए गए हैं और इसके बाद फिर से निगम में वेतन के बाद पेंशन सहित अन्य भुगतान देने के लिए 3 करोड़ से ज्यादा की राशि ली गई है।
निगम के पास बची है केवल आरक्षित मदों की एफडीआर
निगम वित्तीय विभाग के जानकारों की मानें तो भुगतान के लिए चुनिंदा ठेकेदारों को दोहरी कृपा से भुगतान देने की फाइलें निपटाने की खबर है। अभी जनवरी में वेतन देने के बाद निगम खजाने में किसी भी तरह के भुगतान के लिए राशि नहीं है और निगम के पास आरक्षित मद को छोड़कर फ्री होल्ड वाली कोई भी एफडी शेष नहीं बची है। जिससे ठेकेदारों के भुगतान किए जा सकें। यही कारण है कि निगम के ऊपर लगातार देनदारियां बढ़ रही हैं।