अपनी ही सांसें गिन रहे ऑक्सीजन प्लांट
इंदौर। कोरोना महामारी की दूसरी और तीसरी लहर की शुरुआत में शहर में करीब 52 करोड़ की लागत से 48 अस्पतालों में लगाए ऑक्सीजन प्लांट वर्तमान में अपनी ही सांसें गिन रहे हैं। ये प्लांट केवल अस्पतालों की शोभा बढ़ा रहे हैं, क्योंकि इनका उपयोग हुए ही सालों गुजर गए। कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान जिस तरह से पूरे शहर में ऑक्सीजन की कमी हुई थी, उन परिस्थितियों को देखते हुए इन प्लांटों को लगाया गया था।
इतना ही नहीं, निजी अस्पतालों को 50 प्रतिशत सब्सिडी भी दी गई थी। सरकारी अस्पतालों की बात की जाए तो एमवायएच, सुपर स्पेशलिटी, एमआरटीबी, एमटीएच, कैंसर अस्पताल, हुकुमचंद पॉली क्लिनिक, पीसी सेठी अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए गए थे। बता दें कि स्थापित किए गए इन ऑक्सीजन प्लांट में कई तो ऐसे हैं, जो एक बार शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं।
इनका श्रीगणेश ही नहीं हुआ। हुकुमचंद पॉली क्लिनिक और पीसी सेठी जहां इस प्लांट की कोई जरूरत ही नहीं थी वहां भी इसे बना दिया गया। वहीं दूसरी ओर देखा जाए तो इन ऑक्सीजन प्लांट को चलाने में बिजली खर्च करीब एक से डेढ़ लाख रुपए आता है। अस्पताल प्रबंधन का कहना है ऑक्सीजन प्लांट को चलाने में जो बिजली खर्च आता है वो एक से डेढ़ लाख रूपए होता है। इसलिए बाजार से लिक्विड ऑक्सीजन की खरीदी की जा रही है, जिसका मासिक खर्च 50 से 60 हजार रुपए है। साथ ही बाजार से जो लिक्विड ऑक्सीजन उपयोग की जाती है उसकी शुद्धता 100 फीसदी है, जबकि प्लांट की 97 प्रतिशत ही है।
मेंटेन करना मुश्किल
अस्पताल के जिम्मेदारों से चर्चा की गई तो उनका कहना था कि ऑक्सीजन प्लांट लग रहे थे, तभी जानकारी दी गई थी कि ऑक्सीजन प्लांट लगाए जा रहे हैं, लेकिन इनका रखरखाव इतना आसान नहीं है। पूरी एक तकनीकी टीम इसको ऑपरेट करने के लिए रखना पड़ेगी। निजी कंपनी को ठेका भी दिया गया, तो उसका खर्चा बहुत अधिक आएगा, लेकिन किसी ने नहीं सुना। अब हालत यह है कि दो वर्ष होने के बाद भी इनका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है, क्योंकि इतनी ऑक्सीजन की जरूरत ही नहीं है। इसी कारण इनका रखरखाव भी नहीं हो पा रहा है और यह धूल खा रहे हैं।