अब एंटीबायोटिक बेअसर, 5 साल में दोगुनी रफ्तार से बेकार हो रहीं दवाएं

आईसीएमआर की रिपोर्ट में किया गया चौंकाने वाला खुलासा

अब एंटीबायोटिक बेअसर, 5 साल में दोगुनी रफ्तार से बेकार हो रहीं दवाएं

नई दिल्ली। भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने की रफ्तार बढ़ रही है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 सालों में भारत में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ गई है, जिन पर एंटीबायोटिक दवाओं ने काम नहीं किया। इस डाटा के हिसाब से ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत में कई मरीजों की जान इसीलिए भी जा सकती है कि उन पर दवाओं ने काम करना बंद कर दिया। वो बीमारी से नहीं, दवाओं के बेअसर हो जाने से मारे गए। स्टडी के मुताबिक 40 से 70 प्रतिशत मरीजों पर एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं कर रही हैं। शोध के अनुसार एंटीबायोटिक दवाओं के काम ना करने की समस्या केवल अस्पताल में भर्ती गंभीर मरीजों तक सीमित नहीं है। पेट खराब होने के मामलों में ली जाने वाली कॉमन एंटीबायोटिक दवाएं भी मरीजों पर बेअसर साबित हो रही हैं। बता दें, अमेरिका और यूरोप में डॉक्टरों ने कितनी बार एंटीबायोटिक लिखी और क्यों लिखी, इस पर निगरानी रखी जाती है, लेकिन भारत में 2017 में एंटीबायोटिक दवाओं के बेवजह इस्तेमाल को रोकने की पॉलिसी केवल कागजों में ही दर्ज है।

क्या निकला निष्कर्ष में

  •  2017 में ई कोलाई बैक्टीरिया के शिकार 10 में से 8 मरीजों पर दवाओं ने काम किया था। लेकिन 2022 में 10 में से केवल 6 मरीजों पर दवाओं ने काम किया।
  • 2017 में क्लैबसेला निमोनिया इंफेक्शन के शिकार 10 में से 6 मरीजों पर दवाओं ने काम किया, लेकिन 2022 में 10 में से केवल 4 मरीजों पर दवाएं काम कर रही थी।

आईसीएमआर ने कहा- इन मामलों में न दें एंटीबायोटिक दवाएं

  • हल्के बुखार के मामलों में एंटीबायोटिक दवाएं ना दें। 
  • गला खराब होने, जुकाम जैसे साधारण मामलों में एंटीबायोटिक दवाएं ना दें। 
  • स्किन इंफेक्शन, स्किन में सूजन जैसी परेशानी में दवा न दें।

भारत में आसानी से उपलब्ध होती हैं एंटीबायोटिक दवाएं

कई डॉक्टर उन बीमारियों में भी एंटीबायोटिक दवाएं लिख देते हैं, जहां इनकी जरूरत नहीं होती। मरीज दवाओं का पूरी डोज नहीं लेता और दवा बीच में छोड़ देता है। एंटीबायोटिक दवाएं डॉक्टर के पर्चे से ही मिल सकती हैं, लेकिन भारत में सीधे केमिस्ट से दवा लेना कोई मुश्किल काम नहीं है। ऐसे में बिना डॉक्टरी सलाह के दवाएं खाने वाले मरीज निमोनिया (कम्युनिटी से मिली हो तो) 5 दिन दें एंटीबायोटिक दवा का कोर्स भी बहुत हैं।

देश के 21 अस्पतालों से डाटा किया इकट्ठा

भारत की सबसे बड़ी मेडिकल रिसर्च संस्था ने पिछले वर्ष जनवरी से लेकर दिसंबर तक देश के 21 अस्पतालों से डाटा इकट्ठा किया। इन अस्पतालों में आईसीयू में भर्ती मरीजों के 1 लाख सैंपल्स इकट्ठे किए गए। इस जांच में 1747 तरह के इंफेक्शन वाले बैक्टीरिया मिले। इन सभी में ई कोलाई बैक्टीरिया और क्लैबसेला निमोनिया के बैक्टीरिया सबसे ज्यादा मिले। इन बैक्टीरिया के शिकार मरीजों पर कोई भी एंटीबायोटिक दवा काम नहीं कर रही थी।

पानी के तत्व में घुल चुके हैं एंटीबायोटिक दवाओं के तत्व

इसी साल जनवरी में लैंसेट जर्नल में छपी एक रिपोर्ट में ये दावा भी किया गया कि चीन और भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के तत्व पानी में घुल चुके हैं और लोगों के घरों में पहुंचने वाले पानी में एंटीबायोटिक पहुंच रहे हैं।

इनको दें एंटीबायोटिक

  • बेहद गंभीर मरीजों को। 
  • जिन मरीजों के बुखार के साथ वाइट ब्लड सेल्स काफी कम हों। 
  • मरीज को इंफेक्शन से निमोनिया हुआ हो। 
  • मरीज को गंभीर सेप्सिस हो या कोई इंटरनल टिश्यू बेकार होने लगे, इसे मेडिकल भाषा में नैक्रोसिस कहते हैं।