राजपूत परिवार ही नहीं पूजते हथियार, खिलाड़ी भी करते हैं अपनी तलवार और राइफल की पूजा

राजपूत परिवार ही नहीं पूजते हथियार, खिलाड़ी भी करते हैं अपनी तलवार और राइफल की पूजा

विजयादशमी का दिन हर समुदाय के लिए विशेष होता है। एक तरफ राजपूत परिवारों में अस्त्र-शस्त्र का पूजन होता है जिसमें सालों पुराने हथियारों को दशहरे के दिन निकालकर उनका पूजन किया जाता है तो वहीं बंगाली समुदाय में अस्त्र पूजन के अलावा मुख्य रूप से सिंदूर खेला और देवी को दधिकर्मा का विशेष भोग लगाकर उन्हें ससुराल विदा किया जाता है। बंगाली समुदाय से जुड़े लोगों का कहना है कि विजयदशमी का दिन हमारे लिए खास होता है क्योंकि देवी मायके में अपना समय बिताने के बाद ससुराल चली जाती हैं। इस दिन हम सभी भावुक हो जाते हैं। भोपाल में इंटरनेशनल राइफल और फेंसिंग(तलवारबाजी) के खिलाड़ी अपने हथियार का विधिवि धान से पूजन इस भाव से करते हैं कि वे अपने खेल से देश का नाम इंटरनेशनल लेवल पर रोशन करते रहें। यह खिलाड़ी गोवा में होने जा रहे नेशनल गेम्स में हिस्सा लेने जा रहे हैं और उससे पहले अपनी-अपनी अकादमी में अस्त्र-शस्त्र पूजन करेंगे।

150 साल पुरानी तलवारों की पूजा

राजपूत समाज में विजयदशमी का खास महत्व होता है। इस दिन हम अपने अस्त्र-शस्त्र को विधि-विधान से साफसफाई करके उनकी पूजा करते हैं। पूजा के दौरान बताया जाता है जब भगवान श्रीराम लंका से विजयी होकर लौटे तो उनके शस्त्रों का पूजन किया गया था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है। इस दिन हम शमी के वृक्ष का पूजन करते हैं। इस दिन पान के बीड़े का भोग लगाते हैं और लाल कपड़े में हथियार रखते हैं। हमारे घर में ब्रिटिश कालीन बूंदकें व लगभग 150 साल से ज्यादा पुरानी तलवारे हैं, जिसका मेरे पति विश्वेंद्र प्रताप सिंह राठौर पूजन करते हैं। पूजन में महिलाएं राजपूती पोशाक या साड़ी पहनती हैं और पुरुष साफा और राजपूती शेरवानी पहनते हैं।

अपनी राइफल की करती हूं पूजा

हमारी एकेडमी में जब शस्त्र पूजन होता है तो सभी अपने हथियार एक जगह रख देते हैं और फिर विधि-विधान से पूजन करके हम सभी अपने वैपन को रोली-अक्षत और पुष्प अर्पित करते हैं। इस दौरान एमपी शूटिंग एकेडमी में हम 50 से 60 खिलाड़ी मौजूद रहते हैं। -सुनिधि चौहान, इंटरनेशनल राइफल प्लेयर

खेल और अच्छा हो इस भाव से तलवार की पूजा

मैं फेंसिंग(तलवारबाजी) का खिलाड़ी हूं तो मेरे लिए मेरी तलवार अहम है, इसलिए दशहरे के दिन पारंपरिक रूप से अपने तलवार की पूजा करता हूं। हम सभी खिलाड़ी हमारी एकेडमी में एकत्रित होकर विधि-विधान से पूजा करते हैं। अब मैं गोवा में होने वाले नेशनल गेम्स के लिए जाने वाला हूं। खिलाड़ी हमेशा यही चाहता है कि वो देश का नाम रोशन करें तो इसी भाव से पूजा करूंगा कि अपने खेल में मेडल लाकर सभी का नाम रोशन करूं। कुछ समय पहले चाइना और दोहा में भी खेलकर आया हूं। -शंकर पांडे, फेंसिंग खिलाड़ी

दधिकर्मा मिठाई का देवी को लगाते हैं भोग

बंगाली परिवारों के लिए विजयदशमी का दिन विशेष होता है। अस्त्र पूजन के साथ ही दशमी के दिन हम सिंदूर खेला के बाद देवी का विसर्जन तो करते ही हैं लेकिन इस दिन देवी को विशेष भोग लगाया जाता है। भीगे हुए पोहे के अंदर मावे से बनी मिठाई(संदेश), केला, बताशा और दही को मिक्स किया जाता है और उसे लड्डू की तरह बनाकर भोग के रूप में चढ़ाते हैं, इसे भोग को दधिकर्मा कहते हैं। ये इसलिए चढ़ाया जाता है क्योंकि मां अपने घर से ससुराल वापस जा रही होती हैं तो उन्हें यह प्रसाद चढ़ाते हैं। सिंदूर खेला के कारण दशहरे का दिन महिलाओं के लिए विशेष उत्सव का दिन होता है। -डॉ. ममता भट्टाचार्य, असिस्टेंट डायरेक्टर, संचालनालय, बीसीएमडब्ल्यू