राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता प्रवीण मोरछले ने अपनी फिल्म में दिया भोपाल व प्रदेश के कलाकारों को मौका
फिल्म निर्देशक प्रवीण मोरछले को 2017 की फीचर फिल्म वॉकिंग विद द विंड(लद्दाखी) के लिए नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिल चुका है। मप्र के नर्मदापुरम में पले-बढ़े और टिमरनी से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले प्रवीण ने इस बार अपनी नई फिल्म सर मैडम सरपंच में भोपाल व प्रदेश के कलाकारों को मौका दिया है क्योंकि फिल्म का बैकग्राउंड मप्र में सेट है और कहानी का एक छोटा हिस्सा प्रेरित है, माया विश्वकर्मा के जीवन से जो प्रदेश के नरसिंहपुर के साईं खेड़ा ब्लॉक की ग्राम पंचायत में निर्विरोध सरपंच चुना गई हैं। इस फिल्म को फ्रांस के वेसोल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल आॅफ एशियन सिनेमाज के 29 वें एडिशन में इनाल्को जूरी अवॉर्ड मिला है। यह फिल्म सिनेमाघरों में 14 अप्रैल को रिलीज होने जा रही हैं। इस फिल्म में भोपाल विहान ड्रामा के रंगकर्मी हेमंत देवलेकर ,तनिष्का हतवलने, नमन मिश्रा, ज्योति दुबे और लाइन प्रोड्यूसर अखिलेश शामिल हैं। फिल्म में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता सीमा बिस्वास भी हैं।
अब गांवों की कहानी से कनेक्ट कर रहे युवा
इस फिल्म की कहानी सॉफ्ट बुंदेली है और कहानी मेट्रो के यूथ को भी कनेक्ट करेंगी क्योंकि रियलिज्म सिनेमा को काफी पसंद किया जा रहा है। प्रवीण हमेशा ही अपने विचार के साथ स्पष्ट रहते हैं और दर्शकों को भी सोचने पर मजबूर करते हैं। यह फिल्म मनोरंजन तो करेगी ही साथ ही सामाजिक बदलाव का संदेश भी देगी। हेमंत देवलेकर, रंगकर्मी, भोपाल
यूएस में कॅरियर छोड़ चुना अपना गांव
मेरी इस फिल्म के साथ इतनी कहानी है कि मैं अमेरिका में न्यूक्लियर मेडिसिन और कैंसर रिसर्च का काम छोड़कर अपने गांव वापस आई क्योंकि मैंने देखा कि जो समस्याएं होना नहीं चाहिए उसके लिए हमारे देश के लोग नेताओं पर निर्भर रहते हैं। माया विश्वकर्मा, मेहरागांव, सरपंच
सीमा बिस्वास के साथ किया काम
मैंने इस फिल्म में एक्ट्रेस एरियाना सजनानी की कजिन सिस्टर का किरदार निभाया है और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता एक्ट्रेस सीमा बिस्वास भी साथ में फिल्म में है। मेरा कैरेक्टर छुटकी का है जिसे निभाने में बहुत मजा आया। मैं भरतनाट्यम के साथ एक्टिंग भी करती हूं जिसकी वजह से मुझे यह रोल मिल पाया। तनिष्का हतवलने, नृत्यांगना, भोपाल
जो विचार सोने न दे, उसी पर बनाता हूं मूवी: प्रवीण
इस फिल्म में प्रमुख अभिनेत्री एरियाना सजनानी हैं जो खुद यूएस में रहती हैं इसी वजह से उन्हें फिल्म के लिए चुना क्योंकि जब वो मप्र के छपरी, रेहटी और भैरूंदा की बोली और लोगों को सुन रही थीं तो बड़े नेचुरल से कुछ हैरानी वाले तो कुछ अचंभित वाले एक्सप्रेशन उनके चेहरे पर आ रहे थे और यही हम दिखाना चाहते थे कि यूएस से आई एक लड़की कैसे अपने पिता के गांव में लाइब्रेरी शुरू करने से सपने को पूरा करने आई है। यह फिल्म परसाई के व्यंग्य जैसी सामाजिक व्यंग्य हैं। जमीनी स्तर की राजनीति, भ्रष्टाचार और पितृसत्ता पर सर मैडम सरपंच सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अपने सामाजिक दायरे में काम करने वाली महिलाओं के लचीलेपन का जश्न मनाती हैं। मेरे दिमाग में हर दूसरे दिन फिल्म को लेकर नए आइडिया आते हैं लेकिन चुनता उसी को हूं जो विचार मुझे 6 महीने तक लगातार परेशान करें और सोने न दें।