शरीर विकलांग था पर मैंने अपनी सोच को डिसेबल नहीं होने दिया

शरीर विकलांग था पर मैंने अपनी सोच को डिसेबल नहीं होने दिया

इंदौर। दिव्यांगता अगर किसी को जन्म से हो तो वह अंदर ही अंदर टूटता जाता है, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो सबके लिए एक मिसाल पेश करते हैं। ऐसी ही कहानी इंदौर की कोमल व्यास (32) की है। कोमल जन्म से 75 फीसदी दिव्यांग हैं। लेकिन पिता का साथ छूट जाने के बाद वे मां और भाई की जिम्मेदारी उठा रही हैं। कोमल मल्टीनेशनल कंपनी टास्कअस में डेटा एंट्री का जॉब कर रही हैं। कोमल कहती हैं कि डिसेबिलिटी सोच से नहीं, शरीर से थी तो उसको खुद पर कैसे हावी होने देती।

सोच भी डिसेबल हो जाती तो मां दूसरों के घर काम करती और भाई भटक जाता। पिता ने साथ दिया, उन्होंने मेरी जिंदगी को संवारा। दसवीं के बाद पूरी पढ़ाई प्राइवेट की। घर के नजदीक ही एक ऑफिस में कैशियर की नौकरी की। कॉलेज के दूसरे वर्ष यानी 2015 में पिता की मौत हो गई। मैं, मां और भाई तीनों डिप्रेशन में चले गए, लेकिन खुद को संभालते हुए परिवार की जिम्मेदारी ली।

कोमल ने कहा- कभी हौसला मत हारना

मुझे विजय नगर में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम मिला। जब वर्क फ्रॉम ऑफिस हुआ तो उन्होंने मुझे सुविधाएं दीं। नाइट शिफ्ट के दौरान ऑफिस की गाड़ी लेने और छोड़ने आती है। ऑफिस में इलेक्ट्रिक व्हील चेयर है, जिससे काम करने में आसानी होती है। घर पर मां और भाई का साथ मिलता है, अभी स्किल पर काम कर रही हूं, ताकि टीम लीडर बन सकूं। - कोमल व्यास

कोमल बचपन से ही ऐसी है, दिव्यांग होने के बाद भी हम उसके ऊपर निर्भर हैं। पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसकी के कंधों पर है। दिनचर्या में सारे काम मैं करती हूं। मुझे अपनी बेटी पर नाज है। - दम्यनती व्यास, कोमल की मां

कोमल ने उन लोगों के लिए मिसाल पेश की है जो सामान्य होकर भी जिंदगी से हार मान जाते हैं। वह उनके जीवन को मोटिवेशन दे रही है। - प्रियेश पालीवाल, टीम लीडर, टास्कअस कंपनी