देश के घरों में 20 करोड़ से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक कचरा
आईसीईए ने एक्सचेंजर के साथ मिलकर किया सर्वे
नई दिल्ली। देश के घरों में इन दिनों खराब और बेकार इलेक्ट्रॉनिक सामानों का अंबार लगता जा रहा है। स्मार्टफोन, कंप्यूटर-लैपटॉप समेत करीब 20.6 करोड़ इलेक्ट्रॉनिक सामान घरों में पड़े हुए हैं। सर्वेक्षण एक्सेंचर के साथ मिलकर इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक एसोसिएशन (आईसीईए) ने हाल ही में इलेक्ट्रानिक उपकरणों को लेकर एक सर्वे किया। सर्वे की रिपोर्ट 'पाथवेज टु अ सर्कुलर इकॉनोमी इन इंडियन इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर' शीर्षक के साथ जारी की गई है।
एक व्यक्ति के पास करीब 4 इलेक्ट्रॉनिक सामान हैं खराब :
सर्वे के अनुसार देश में इलेक्ट्रॉनिक कचरा अथवा इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से पैदा होने वाला कचरा खत्म करना अभी भी सबसे बड़ी चुनौती है। वित्त वर्ष 2021 तक उपलब्ध आंकड़े चौंकाने वाले हैं। सर्वे में 40 फीसदी प्रतिभागियों ने माना कि उनके पास मोबाइल और लैपटॉप सहित कम से कम चार ऐसे उपकरण हैं, जो कई वर्षों से खराब पड़े हैं। सर्वे में यह भी सामने आया कि, पांच में से दो उपभोक्ता बेकार उपकरण को रीसाइक्लिंग के लिए देने से मना कर देते हैं। क्योंकि उन्हें पता ही नहीं है कि रीसाइक्लिंग कितनी जरूरी है। सर्वे रिपोर्ट कहती है कि, वित्त वर्ष 2021 में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों (हर 15 मोबाइल फोन पर 1 लैपटॉप) की संख्या करीब 51.5 करोड़ थी। मगर 7.5 करोड़ बेकार भी पड़े थे। इस तरह यह संख्या 20.6 करोड़ होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले वर्षों में यह संख्या और बढ़ेगी। सर्वे में बताया गया कि, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की रीसाइक्लिंग मुख्य तौर पर दो तरह से होती है। पहला कबाड़ियों के जरिये और दूसरा, थोक कबाड़ कारोबारियों के जरिए। कबाड़ी लोगों के घरों से बेकार पड़े इलेक्ट्रॉनिक सामान इकट्ठा कर लेते हैं, जबकि थोक कबाड़ कारोबारी संबंधित ब्रांड के साथ मिलकर काम करते हुए इलेक्ट्रॉनिक सामान जमा करते हैं।
90% बेकार सामानों को घरों से लेकर जाते हैं कबाड़ी
कबाड़ी 90% बेकार पड़े मोबाइल फोन घरों से लेकर आते हैं। वास्तविक रीसाइक्लिंग के समय भी 70% उपकरण कबाड़ियों के जरिए ही आते है। 22% संगठित कंपनियों के जरिए 2% उपकरणों का इस्तेमाल पुर्जे निकालने के लिए होता है, मगर इसमें समय लगता है। बाकी को जमीन के भीतर गड्ढे में डाल दिया जाता है, क्योंकि खतरनाक ई-कचरा रिसने की आशंका बनी रहती है।
सिर्फ 18 फीसदी ही कराते हैं उपकरणों को रिपेयर
रिपोर्ट में कहा गया है कि मरम्मत की जरूरत वाले करीब 60 फीसदी उपकरणों को सस्ते अनौपचारिक क्षेत्र में खपा दिया जाता है। इसमें वारंटी की अवधि खत्म होने वाले मोबाइल फोन आदि शामिल होते हैं। इस बाजार में महज 18 फीसदी उपभोक्ता ही संगठित कंपनियों के जरिये अपने उपकरणों की मरम्मत कराते हैं।
इसलिए बेकार पड़े उपकरण
- पहला बदले में अच्छे आॅफर नहीं मिला।
- दूसरा उपकरणों से व्यक्तिगत लगाव, क्योंकि बहुत डेटा लीक होने के चलते लोग इन्हें छोड़ना नहीं चाहते है।
- तीसरा अहम कारण जागरूकता का अभाव है।