देशी फ्रिज यानि मटकों का निर्माण मुश्किल, मिट्टी तिगुनी हुई महंगी

देशी फ्रिज यानि मटकों का निर्माण मुश्किल, मिट्टी तिगुनी हुई महंगी

जबलपुर। देशी फ्रिज कहलाने वाले मटकों और सुराही सहित मिट्टी के बर्तनों के दाम काफी बढ़ गए हैं। इन्हें बनानेवाले कुम्हार मिट्टी के तीन गुना महंगा होने से परेशान हैं। इस बार उनकी ग्राहकी में भी कमी आई है। सामान्य घड़े डेढ़ से दो सौ रुपए का है। सुराही 100 से 150 रुपए की है। दो साल पहले यही सामान आधे दाम में सहजता से मिल जाता था। नतीजतन बाहर से आने वाले माल जो कि दूसरे प्रांतों तक से आ रहा है का मार्केट खासा बढ़ गया है।

शहर में कुम्हार समाज की आबादी करीब 40 हजार है। इनका मुख्य व्यवसाय मिट्Þटी से बर्तन बनाना है। दीये से लेकर पूजन की मूर्तियां और मटके,सुराही,पानी वाली टंकी,कंसेड़ी नुमा मटके इत्यादि ये बनाते हैं। इसके अलावा और भी कलाकृतियां बनाई जाती हैं। इनकी मुख्य समस्या मिट्टी प्राप्त करना है। मटका आदि बनाने में विशेष तरह की मिट्टी मिलती है जो या तो खमरिया में मिलती है या बाजनामठ या गोसलपुर में यहां से परिवहन में ही उन्हें अब लगभगत तीनुगना दाम चुकाने पड़ रहे हैं। इसके अलावा रंग,भट्टी लगाने में लगने वाली लागत भी बढ़ी है।

काली मटकी तिगुने दाम में

काली मिट्टी से भट्टे में तपकर मिलने वाली मटकी,मटका यहां तीन गुने दाम में मिलते हैं। इनकी कीमत 300 रुपए से शुरू हो रही है। दही जमाने की 1 लीटर की मटकी भी 100 रुपए में मिलती है। काली मटकी या मटके का अपना अलग महत्व है,पुराने लोग इसे घर में रखते हैं।

चंदिया का माल भी महंगा

चंदिया से आने वाले चिकनी मिट्टी के घड़े और सुराही इस बार और महंगी हो गई हैं। ये देखने में अच्छी लगने के कारण लोग इन्हें खरीदते हैं। महंगाई ने इन पर भी असर किया है।

मिट्टी तीन गुनी महंगी हो गई है 3 साल पहले ट्राली 700-800 रुपए की आती थी अब 2 हजार रुपए की आती है। भट्टे का सामान भी महंगा है। लोग मोलभाव भी बहुत करते हैं हमें पड़ता नहीं पड़ता इसलिए ग्राहक लौटाना पड़ता है। कल्लू चक्रवर्ती दुकानदार,पुरवा झंडा चौक