एमपी के ‘फुनसुख वांगड़ू’ ने जंगल के स्कूल में साइंस सेंटर बनवाए, एक दर्जन राज्यों में बदला वैज्ञानिक नजरिया

एमपी के ‘फुनसुख वांगड़ू’ ने जंगल के स्कूल में साइंस सेंटर बनवाए, एक दर्जन राज्यों में बदला वैज्ञानिक नजरिया

भोपाल। कहानी थोड़ी फिल्मी है। कुछकुछ ‘थ्री इडियट’ के फुनसुख वांगड़ू की तरह। क्या हुआ जो एक टीचर ने एनआईटी में शिक्षा नहीं ली, लेकिन साइंस अवेयरनेस के लिए मप्र के एक आदिवासी ब्लॉक से उन्होंने जो अलख जगाई, उसे पूरा देश मान्यता देता है। नर्मदापुरम के केसला ब्लॉक के शिक्षक राजेश पाराशर ने अपनी सैलरी से दो मिनी साइंस सेंटर बनवाए। मॉडल्स से विज्ञान को सरलता से समझाने का काम किया। टेलिस्कोप से खगोल विज्ञान समझाया, तो पपेटशो से झाड़फूंक जैसे अंधविश्वासों को गलत साबित करने गांव-गांव घूमे। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित पाराशर अब तीन साल पहले रिटायरमेंट लेकर देशभर में वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ाएंगे।

रिटायरमेंट पर 37 घंटों का स्पेशल साइंस सेशन :

पाराशर 31 अक्टूबर को रिटायरमेंट के उपलक्ष्य में 37 घंटे का विज्ञान जागरूकता का स्पेशल सेशन करने जा रहे हैं। यह खास सेशन 29 अक्टूबर को सुबह 6:00 बजे से शुरू होगा, जो 31 अक्टूबर तक चलेगा।

      पाराशर के कुछ खास प्रयोग 

  • सोशल डिस्टेंसिंग: कोविड काल में मॉडल से समझाया मास्क नहीं होने पर संक्रमण कितनी तेजी से फैलेगा। 
  • लोकतंत्र का विज्ञान: 5 टेस्टट्यूब में अलग-अलग लोग केमिकल डालेंगे, तो हर बार रंग बदलेगा। संदेश यह है कि अगर एक व्यक्ति भी वोट डालने नहीं जाएगा, तो चुनाव का परिणाम कैसे प्रभावित होगा। यह प्रयोग इसी विस चुनाव में सामने लाए। 
  • सोलर साइंस मॉडल: मिनी साइंस सेंटर में मॉडल्स से खगोलविज्ञान में रुचि रखने वालों को आसानी से समझाने की व्यवस्था की। चंडीगढ़, मुंबई, नागपुर, अकोला, नई दिल्ली, प्रयागराज से कई वैज्ञानिक इस मिनी साइंस सेंटर को देखने आ चुके हैं।

केसला जैसे गांव में रहकर राजेश पाराशर ने विज्ञान जागरूकता के लिए जो काम किए, उन्हें देश के कई राज्यों ने अपनाया है। उन्होंने विज्ञान के लिए जो किया, वो स्वर्णाक्षरों में लिखने लायक है। - मनोज पटेरिया, भारत सरकार के पूर्व वैज्ञानिक सलाहकार, दिल्ली