राजस्थान में काली सिंध पर बैराज के खिलाफ SC पहुंची मप्र सरकार
40 हजार करोड़ की चंबल-पार्वती-काली सिंध नदीं परियोजना उलझी
भोपाल। राजस्थान सरकार द्वारा सेंटर वॉटर कमीशन (सीडल्ब्यूसी) की गाइड लाइन का उल्लंघन कर कोटा जिले के नवनेरा में काली सिंध नदी पर बैराज बनाने के मामले में मप्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। इधर, इसके चलते 40 हजार करोड़ रुपए से अधिक की लागत वाली अंतर्राज्यीय चंबल-पार्वती और काली सिंध नदी परियाजना उलझ गई है। सीडब्ल्यूसी के अनुसार, किसी भी परियोजना में बैराज बनाकर जल भराव क्षमता और उपलब्धता का 25 प्रतिशत पानी ही उपयोग में लाया जा सकता है। जल स्रोत और नदियों में 75 प्रतिशत पानी होना चाहिए, ताकि उसका बहाव बना रहे और सूखा पड़ने पर संकट न पैदा हो। लेकिन राजस्थान काली सिंध नदी का 50 प्रतिशत पानी लेने की परियोजना तैयार कर रहा है। इससे उप्र, मप्र और राजस्थान में चंबल, पार्वती और काली सिंध सहित अन्य सहायक नदियों में पानी का बहाव कम हो जाएगा। मप्र के भिंड, मुरैना, श्योपुर सहित कई जिलों में पानी का संकट हो जाएगा। मप्र सरकार ने इस मामले में केन्द्र से आपत्ति जताई थी। इस पर केन्द्र ने राजस्थान को नियमों का पालन करने को कहा था, लेकिन राजस्थान ने अमल नहीं किया। इसके बाद मप्र ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। याचिका में सीडब्ल्यूसी की गाइडलाइन के उल्लंघन का हवाला देते हुए मप्र ने कहा है कि इससे प्रदेश में इन नदियों में पानी का बहाव कम हो जाएगा।
ऐसे किया जाता है पानी का निर्धारण :
सीडब्ल्यूसी के अनुसार, किसी भी सिंचाई परियोजना का रोडमैप पिछले 100 सालों में नदी में जल भराव, नदी के कैचमेंट क्षेत्र में वर्षा की स्थिति का आकलन कर किया जाता है। 75वें वर्ष में नदी में पानी की उपलब्धता के आधार पर परियोजना तैयार की जाती है। माना जाता है कि सूखा पड़ने या अन्य स्रोत बंद होने पर भी बांध में 75 वर्ष तो पानी रहेगा ही। राजस्थान इसे 50 वर्ष करना चाहता है। ऐसे में बांध में 50 वर्ष तक उपयोग लायक पानी आने की गारंटी रहेगी पर उसके बाद की नहीं।
मप्र पर क्या पड़ेगा असर
1चंबल-पार्वती और काली सिंध नदी परियाजना उलझने से ग्वालियर-चंबल संभाग में चार लाख हेक्टेयर में सिंचाई प्रभावित होगी।
2कूनो सहित अन्य सहायक नदियों पर चार डैम का पुनर्निर्माण प्रस्तावित है। इसका काम भी प्रभावित होगा।
3राजस्थान अधिक पानी लेता है, तो काली सिंध, उससे जुड़ी नदियों की जल बहाव क्षमता घटेगी। भूजल घटेगा, भिंड, मुरैना, श्योपुर आदि में पानी का संकट होगा।
4 चंबल में पानी कम होने से बड़ा 4 खतरा घड़ियाल प्रोजेक्ट पर।
चंबल-पार्वती-काली सिंध परियोजना के संबंध में मप्र और राजस्थान के बीच सहमति बनाने के प्रयास चल रहे हैं। सहमति बनने के बाद डीपीआर तैयार की जाएगी। इससे दोनों राज्यों में करीब 8 लाख हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता बढ़ जाएगी। - भोपाल सिंह, महानिदेशक, राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण