मप्र टाइगर स्टेट, लेकिन इस साल अब तक केंद्र से एक रुपया भी नहीं मिला
भोपाल। देश में सबसे ज्यादा टाइगर मध्यप्रदेश में हैं। पिछले साल से हम टाइगर स्टेट है और इस बार भी यह दर्जा मिलना तय है। बावजूद केंद्र सरकार से पर्याप्त बजट नहीं मिल रहा है। मप्र वन्य प्राणी विभाग के अनुसार, केंद्र से इस साल अब तक एक भी पैसा नहीं मिला है। जबकि, विभाग ने फरवरी में केंद्र को भेजे प्रस्ताव में 100 करोड़ से अधिक का बजट मांगा था। हाल यह है कि पन्ना, संजय डुबरी और बांधवगढ़ नेशनल पार्क को पिछले साल के बजट की दूसरी किस्त ही नहीं मिली है। प्रदेश में छह राष्ट्रीय टाइगर रिजर्व कान्हा, बांधवगढ़, पन्ना, पेंच, संजय डुबरी और सतपुड़ा हैं। एक अनुमान के अनुसार, हर साल प्रत्येक टाइगर रिजर्व के लिए औसतन 25 करोड़ की जरूरत है, लेकिन बमुश्किल 5-6 करोड़ ही मिल रहे हैं। पिछले साल विभाग ने करीब 125 करोड़ मिलने का अनुमान लगाया था, लेकिन 79 करोड़ ही मंजूर हुए।
मप्र में 710 टाइगर, उत्तराखंड ने कर्नाटक को पीछे छोड़ा
मप्र एक बार फिर देश का टाइगर स्टेट होगा। यहां 710 के आसपास टाइगर हो गए हैं, जबकि उत्तराखंड को दूसरा स्थान मिलना तय है। पिछली बार दूसरे स्थान पर रहने वाला कर्नाटक तीसरे स्थान पर रहेगा। केंद्र सरकार शनिवार को बाघ गणना 2022 की विस्तृत रिपोर्ट जारी कर रही है। हर चार साल में होने वाली गणना में इस बार कई नई तकनीक का प्रयोग किया गया। सूत्रों के अनुसार, मप्र और उत्तराखंड में मुख्य मुकाबला है। इसमें मप्र में 710 से अधिक बाघ होना लगभग तय है, जो देश के राज्यों में सबसे अधिक होंगे। पिछले साल प्रदेश ने कड़े मुकाबले में कर्नाटक को 2 बाघ अधिक होने से पछाड़ा था। कर्नाटक के टाइगर रिजर्व में कुल 524 बाघ पाए गए थे। उल्लेखनीय है कि 9 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैसूर में राष्ट्रीय और जोन स्तर पर बाघों की संख्यात्मक रिपोर्ट जारी कर चुके हैं। इसके अनुसार, पूरे देश में 3,167 बाघ हैं। रिपोर्ट में मध्य भारत लैंडस्केप में सबसे अधिक बाघ पाए जाना बताया गया था। बाघ तथा तेंदुआ सहित सभी वन्यप्राणियों की गणना हर चार साल में की जाती है। यह गणना मप्र में नवंबर 2021 से अक्टूबर 2022 के बीच की गई थी। गणना के दौरान प्रदेश में करीब 15 ऐसे वन क्षेत्रों में बाघों की उपस्थिति देखी गई, जहां पहले कभी बाघ नहीं दिखे।
पहले यह होती थी व्यवस्था :
एक पूर्व पीसीसीएफ का कहना है कि केंद्र से बजट कम मिलना तो संकट है ही, बड़ी समस्या है कि मंजूर होने के बाद भी पैसा समय पर नहीं मिलता। पहले सभी टाइगर रिजर्व को एक साथ राशि मिलती थी। अब एक टाइगर रिजर्व के लिए वित्त से मंजूरी लेनी पड़ती है।
वन्य प्राणियों की सुरक्षा और सरंक्षण के लिए हर साल बढ़ाकर बजट मांगा जाता है। इस साल अभी तक केंद्र से बजट मिलने का इंतजार है। राज्य मद से जो बजट दिया जा रहा है, उससे तमाम व्यवस्थाएं बनाई जा रही हैं। - शुभरंजन सेन, एपीसीसीएफ, वन्यप्राणी विभाग