जीवनदायिनी बेतवा नदी हो रही मैली, सरकारी तंत्र उदासीन

जीवनदायिनी बेतवा नदी हो रही मैली, सरकारी तंत्र उदासीन

डॉ. आरके पालीवाल। भोपाल के समीप छोटे से वन ग्राम झिरी से प्रकट हुई करोड़ों लोगों की जीवनदायिनी बेतवा नदी की मौजूदा स्थिति भयावह चिंता में डालने वाली है। जलस्रोतों और पर्यावरण के प्रति जनजागरूकता में कमी तो है ही, लेकिन सरकारी तंत्र की उदासीनता व अनदेखी आपराधिक लापरवाही ही है। 8 राज्यों के 40 जल विशेषज्ञों और पर्यावरणविद मित्रों के साथ करीब 200 किलोमीटर तक की यात्रा के दौरान हम लोगों ने बेतवा नदी में गंदगी के जो दृश्य देखे, उससे मन व्यथित हैं। हमने उद्गम स्थल से लेकर कई स्थानों पर नदी का कचरा साफ भी किया। कई स्थानों पर तो पानी सड़ांध मार रहा है। दोनों किनारों से पेड़ गायब हैं। बेतवा को मंडीदीप का औद्योगिक कचरा गंदा कर रहा है। बेतवा के पहले कालियासोत नदी में मिलकर यह गंदगी बेतवा में गिरती है। विदिशा में चोरघाट नाले का जल-मल नदी में फेंका जा रहा है।

गंदे नाले के पानी से सब्जी

हमने नदी किनारे बसे गांवों के ग्रामीणों में नदी संरक्षण और साफसफाई का भाव भी जगाने की कोशिश भी की। चोर घाट नाले के गंदे पानी से गोभी-पालक व अन्य सब्जी उगाकर स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है।

वन विहीन हुए किनारे

गेहूँ के लिए बड़ी-बड़ी मोटरों से इतना पानी खींचा जा रहा है कि फरवरी में ही नदी सूखने लगती है। कभी चर्म रोगों का उपचार करने की शक्ति रखने वाली बेतवा में औद्योगिक कचरा डलने से अब चर्म रोग का खतरा बढ़ गया है।

मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की जीवनदायिनी है बेतवा

भोपाल से 15 किमी दूर रायसेन जिले के रातापानी वन्यजीव अभयारण्य के वन ग्राम झिरी में छोटी जलधारा के रूप में प्रकट हुई है बेतवा। यह कलियासोत, बेस आदि कई सहायक नदियों से मिलकर मप्र और यूपी के करोड़ों लोगों के लिए जीवनदायिनी बन जाती है। हमीरपुर के पास यमुना में संगम तक यह करीब 500 किमी सफर तय करती है। इस मार्ग में बेतवा पर बरगी और माताटीला आदि कई बड़े बांध भी बने हैं।

(लेखक प्रख्यात गांधीवादी व आयकर विभाग के रिटायर्ड प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर हैं।)